Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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हे प्रभाकरभट्ट जीवाजीवावेकौ मा कार्षीः कस्मात् लक्षणभेदेन भेदोऽस्ति तद्यथा
रसादिरहितं शुद्धचैतन्यं जीवलक्षणम् तथा चोक्तं प्राभृते‘‘अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं
चेदणागुणमसद्दं जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।’’ इत्थंभूतशुद्धात्मनो
भिन्नमजीवलक्षणम् तच्च द्विविधम् जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं,
भावार्थःहे प्रभाकर भट्ट! तुं जीव अने अजीवने एक न कर कारण के ते बन्नेमां
लक्षणभेदथी भेद छे. ते आ प्रमाणेः
रसादि रहित शुद्ध चैतन्य ते जीवनुं लक्षण छे. प्राभृतमां (श्री कुंदकुंदाचार्यकृत बधा
शास्त्रोमां) कह्युं छे केः
अरसमरुवमगंधं अव्वत्तं चेदणा गुणमसद्दं
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।
अर्थ :हे भव्य! तुं जीवने रसरहित, रूपरहित, गंधरहित, अव्यक्त अर्थात्
इन्द्रियोने गोचर नथी एवो, चेतना जेनो गुण छे एवो, शब्दरहित, कोई चिह्नथी जेनुं ग्रहण
नथी एवो अने जेनो कोई आकार कहेवातो नथी एवो जाण.
आवा शुद्ध आत्माथी अजीवनुं लक्षण भिन्न छे अने ते बे प्रकारनुं छेःजीव
साथे संबंधवाळुं अने जीव साथे संबंध विनानुं; देहरागादिरूप ते जीव साथे संबंधवाळुं छे,
पुद्गलादि पांच द्रव्यरूप ते जीव साथे संबंध विनानुं छे के जे अजीवनुं लक्षण छे, कारण
के जीवथी अजीवनुं लक्षण भिन्न छे, ते कारणे जे पर एवा रागादिक छे तेने पर जाणो-
जे भेद्य अने अभेद्य छे. (अर्थात् जे जीव साथे संबंध विनाना छे अने जीव साथे
संबंधवाळा छे.)
समझ [च ] और [आत्मनः ] आत्माका [आत्मना अभेदः ] अपनेसे अभेद जान [भणामि ]
ऐसा मैं कहता हूँ
भावार्थ :जीव अजीवके लक्षणोंमेंसे जीवका लक्षण शुद्ध चैतन्य है, वह स्पर्श, रस,
गंधरूप शब्दादिकसे रहित है ऐसा ही श्री समयसारमें कहा है‘‘अरसं’’ इत्यादि इसका
सारांश यह है, कि जो आत्मद्रव्य है, वह मिष्ट आदि पाँच प्रकारके रस रहित है, श्वेत आदिक
पाँच तरहके वर्ण रहित है, सुगन्ध, दुर्गंध इन दो तरहके गंध उसमें नहीं हैं, प्रगट (दृष्टिगोचर)
नहीं है, चैतन्यगुण सहित है, शब्दसे रहित है, पुल्लिंग आदि करके ग्रहण नहीं होता, अर्थात्
लिंग रहित है, और उसका आकार नहीं दिखता, अर्थात् निराकार वस्तु है
आकार छह प्रकारके
हैंसमचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सातिक, कुब्जक, वामन, हुंडक इन छह प्रकारके
अधिकार-१ः दोहा-३० ]परमात्मप्रकाशः [ ५९