आपी भरतक्षेत्रना भव्य जीवो पर अपार करुणा करी छे. तेओनो आ कल्याणकारी उपदेश
तेओना निर्वाण बाद पण तेमना शासनमां थयेला केवळी अने श्रुतकेवळी भगवंतो, भावलिंगी
वीतरागी महामुनिवरो द्वारा सतत प्रवाहित थतो रह्यो छे.
मुनिराजोने उपदेश आपी तेना फळरूपे षट्खंडागमरूप प्रथम श्रुतस्कंध लीपीबद्ध थयो हतो. तथा
लगभग तेज अरसामां भगवानश्री गुणधर आचार्य अने पश्चात्वर्ती आचार्योनी पंरपरामां थयेल
महान आचार्य श्री कुंदकुंदाचार्यदेव द्वारा समयसारादि परमागमोरूपे द्वितीय श्रुतस्कंधनो प्रवाह
प्रवाहित थयो. आ रीते बंने श्रुतस्कंधो द्वारा भरतक्षेत्रमां भगवान महावीरनुं शासन जीवंत वर्ती
रह्युं छे.
अत्यंत विरक्त चित्त भावलिंगी दिगम्बराचार्य हता. आपना ग्रंथमां वैदिक मान्यताना शब्दोनो
उपयोग जोतां विद्वानोनुं एम मानवुं थाय छे के आप पहेलां वैदिक मतानुसारी होवा जोईए.
आपनो शिष्य प्रभाकर भट्ट हतो, तेना संबोधन अर्थे आ परमात्मप्रकाशनी रचना थयेल छे.
आपने ‘जोइन्दु’, ‘योगीन्दु’, ‘योगेन्दु’, ‘जोगीचन्द्र’
२. परमात्मप्रकाश, ३. योगसार, ४. दोहापाहुड, ५. नौकार श्रावकाचार, ६. अध्यात्मसंदोह,
७. सुभाषितसंग्रह, ८. तत्त्वार्थटीका, ९. दोहापाहुड, १०. अमृताशीति, ११. निजात्माष्टक.
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव रचित मोक्षपाहुड अने भगवान श्री पूज्यपादस्वामीना समाधितंत्रना
हार्दथी अत्यंत प्रभावित जणाय छे. तेथी अध्यात्मप्रिय आत्मार्थी मुमुक्षुजनोने आ ग्रंथ अत्यंत
प्रिय थई पड्यो छे. आचार्यदेवे संसारना दुःखोथी दुःखी एवा तेमना शिष्य भट्ट प्रभाकरमां