Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 43 (Adhikar 1).

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अथोत्पादव्ययपर्यायार्थिकनयेन संयुक्तोऽपि यः द्रव्यार्थिकनयेन उत्पादव्ययरहितः स एव
परमात्मा निर्विकल्पसमाधिबलेन जिनवरैर्देहेऽपि द्रष्ट इति निरूपयति
४३) भावाभावहिँ संजुवउ भावाभावहिँ जो जि
देहि जि दिट्ठउ जिणवरहिँ मुणि परमप्पउ सो जि ।।४३।।
भावाभावाभ्यां संयुक्त : भावाभावाभ्यां य एव
देहे एव द्रष्टः जिनवरैः मन्यस्व परमात्मानं तमेव ।।४३।।
भावाभावाभ्यां संयुक्त : पर्यायार्थिकनयेनोत्पादव्ययाभ्यां परिणतः, द्रव्यार्थिकनयेन
भावाभावयोः रहितः य एव वीतरागनिर्विकल्पसदानन्दैकसमाधिना तद्भवमोक्षसाधका-
आगे यद्यपि पर्यायार्थिकनयकर उत्पादव्ययकर सहित है, तो भी द्रव्यार्थिकनयकर
उत्पादव्ययरहित है, सदा ध्रुव (अविनाशी) ही है, वही परमात्मा निर्विकल्प समाधिके बलसे
तीर्थंकरदेवोंने देहमें भी देख लिया है, ऐसा कहते हैं :
गाथा४३
अन्वयार्थ :[य एव ] जो [भावाभावाभ्यां ] व्यवहारनयकर यद्यपि उत्पाद और
व्ययकर [संयुक्त : ] सहित है तो भी द्रव्यार्थिकनयसे [भावाभावाभ्यां ] उत्पाद और विनाशसे
(‘‘रहितः’’) रहित है, तथा [जिनवरैः ] वीतरागनिर्विकल्प आनंदरूपसे समाधिकर तद्भव
मोक्षके साधक जिनवरदेवने [देहे अपि ] देहमें भी [
द्रष्टः ] देख लिया है, [तमेव ] उसीको
तूँ [परमात्मानं ] परमात्मा [मन्यस्व ] जान, अर्थात वीतराग परमसमाधिके बलसे अनुभव कर
भावार्थ :जो परमात्मा कृष्ण, नील, कापोत, लेश्यारूप विभाव परिणामोंसे रहित
हवे जे पर्यायार्थिकनयथी उत्पादव्ययथी संयुक्त होवा छतां पण, द्रव्यार्थिकनयथी
उत्पादव्ययथी रहित छे, ते ज परमात्माने जिनवरे निर्विकल्प समाधिना बळथी देहमां पण देख्यो
छे एम कहे छेः
भावार्थःजे पर्यायार्थिकनयथी उत्पादव्ययरूपे (भावाभाव रूपे) परिणत छे
(परिणमेलो छे), द्रव्यार्थिकनयथी भावाभावथी (उत्पादव्ययथी) रहित छे अने ते ज भवे मोक्षनी
साधक एवी आराधनामां समर्थ एवी एक (केवळ) वीतराग, निर्विकल्प, सदानंदरूप समाधि
वडे जिनवरोए देहमां पण जेने देख्यो छे, ते परमात्माने ज तुं जाण अर्थात् वीतराग परम
समाधिना बळथी अनुभव.
७६ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-४३