Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 51 (Adhikar 1).

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केऽपि भणन्ति जीवं सर्वगतं, जीवं केऽपि जडं भणन्ति, केऽपि भणन्ति जीवं देहसमं,
शून्यमपि केऽपि वदन्ति तथाहिकेचन सांख्यनैयायिकमीमांसकाः सर्वगतं जीवं वदन्ति
सांख्याः पुनर्जडमपि कथयन्ति जैनाः पुनर्देहप्रमाणं वदन्ति बौद्धाश्च शून्यं वदन्तीति एवं
प्रश्नचतुष्टयं कृतमिति भावार्थः ।।५०।।
अथ वक्ष्यमाणनयविभागेन प्रश्नचतुष्टयस्याप्यभ्युपगमं स्वीकारं करोति
५१) अप्पा जोइय सव्व-गउ अप्पा जडु वि वियाणि
अप्पा देह-पमाणु मुणि अप्पा सुण्णु वियाणि ।।५१।।
आत्मा योगिन् सर्वगतः आत्मा जडोऽपि विजानीहि
आत्मानं देहप्रमाणं मन्यस्व आत्मानं शून्यं विजानीहि ।।५१।।
जीवको [सर्वगतं ] सर्वव्यापक [भणंति ] कहते हैं, [केऽपि ] कोई सांख्य-दर्शनवाले [जीवं ]
जीवको [जडं ] जड़ [भणंति ] कहते हैं, [केऽपि ] कोई बौद्ध-दर्शनवाले जीवको [शून्यं
अपि ] शून्य भी [भणंति ] कहते हैं, [केऽपि ] कोई जिनधर्मी [जीवं ] जीवको [देहसमं ]
व्यवहारनयकर देहप्रमाण [भणंति ] कहते हैं, और निश्चयनयकर लोकप्रमाण कहते हैं
वह
आत्मा कैसा है ? और कैसा नहीं है ? ऐसे चार प्रश्न शिष्यने किये, ऐसा तात्पर्य है ।।५०।।
आगे नय-विभागकर आत्मा सब रूप है, एकान्तवादकर अन्यवादी मानते हैं, सो ठीक
नहीं है, इस प्रकार चारों प्रश्नोंको स्वीकार करके समाधान करते हैं
गाथा५१
अन्वयार्थ : [हे योगिन् ] हे प्रभाकरभट्ट, [आत्मा सर्वगतः ] आगे कहे जानेवाले
नयके भेदसे आत्मा सर्वगत भी है, [आत्मा ] आत्मा [जडोऽपि ] जड़ भी है ऐसा [विजानीहि ]
जानो, [आत्मानं देहप्रमाणं ] आत्माको देहके बराबर भी [मन्यस्व ] मानो, [आत्मानं शून्य ]
आत्माको शून्य भी [विजानीहि ] जानो
नय-विभागसे माननेमें कोई दोष नहीं है, ऐसा तात्पर्य
है ।।५१।।
bhAvArtha(AtmA kevo chhe te samajavA mATe) e pramANe shiShye chAr prashno upasthit
karyA chhe. e bhAvArtha chhe. 50.
have AgaL kahevAmAn AvatA nayavibhAgathI chAr prashnono abhyupagam-svIkAr kare
chhe
adhikAr-1 dohA-51 ]paramAtmaprakAsha [ 87