Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 52 (Adhikar 1).

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bhAvArthahe prabhAkar bhaTTa! AgaL kahevAmAn AvatA vivakShit nay vibhAganI
apekShAe paramAtmA sarvagat paN chhe, jaD paN chhe, dehapramAN paN chhe, shUnya paN chhe, (nayavibhAg
anusAre tem mAnavAmAn) koI doSh nathI. evo bhAvArtha chhe. 51.
have karma rahit AtmA kevaLagnAn vaDe lokAlokane jANe chhe te kAraNe ‘sarvagat’ chhe, em
pratipAdan kare chhe
bhAvArthaA AtmA vyavahAranayathI kevaLagnAn vaDe lokAlokane jANe chhe, dehamAn
आत्मा हे योगिन् सर्वगतोऽपि भवति, आत्मानं जडमपि विजानीहि, आत्मानं देहप्रमाणं
मन्यस्व, आत्मानं शून्यमपि जानीहि तद्यथा हे प्रभाकरभट्ट वक्ष्यमाणविवक्षितनयविभागेन
परमात्मा सर्वगतो भवति, जडोऽपि भवति, देहप्रमाणोऽपि भवति, शून्योऽपि भवति नापि दोष
इति भावार्थः
।।५१।।
अथ कर्मरहितात्मा केवलज्ञानेन लोकालोकं जानाति तेन कारणेन सर्वगतो भवतीति
प्रतिपादयति
५२) अप्पा कम्म-विवज्जियउ केवल-णाणेँ जेण
लोयालोउ वि मुणइ जिय सव्वगु वुच्चइ तेण ।।५२।।
आत्मा कर्मविवर्जितः केवलज्ञानेन येन
लोकालोकमपि मनुते जीव सर्वगः उच्यते तेन ।।५२।।
आत्मा कर्मविवर्जितः सन् केवलज्ञानेन करणभूतेन येन कारणेन लोकालोकं मनुते
जानाति हे जीव सर्वगत उच्यते तेन कारणेन तथाहिअयमात्मा व्यवहारेण केवलज्ञानेन
आगे कर्मरहित आत्मा केवलज्ञानसे लोक और अलोक दोनोंको जानता है, इसलिये
सर्व व्यापक भी हो सकता है, ऐसा कहते हैं
गाथा५२
अन्वयार्थ :[आत्मा ] यह आत्मा [कर्मविवर्जितः ] कर्मरहित हुआ [केवलज्ञानेन ]
केवलज्ञानसे [येन ] जिस कारण [लोकालोकमपि ] लोक और अलोकको [मनुते ] जानता
है [तेन ] इसीलिये [हे जीव ] हे जीव, [सर्वगः ] सर्वगत [उच्यते ] कहा जाता है
भावार्थ :यह आत्मा व्यवहारनयसे केवलज्ञानकर लोक-अलोकको जानता है, और
शरीरमें रहनेपर भी निश्चयनयसे अपने स्वरूपको जानता है, इस कारण ज्ञानकी अपेक्षा तो
88 ]
yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-52