Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

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अप्पा बुज्झहि दव्वु तुहुं आत्मानं द्रव्यं बुध्यस्व जानीहि त्वम् गुण पुणु दंसणु णाण
गुणौ पुनर्दर्शनं ज्ञानं च पज्जय चउगइभाव तणु कम्मविणिम्मिय जाणु तस्यैव जीवस्य
पर्यायांश्चतुर्गतिभावान् परिणामान् तनुं शरीरं च कथंभूतान् तान् कर्मविनिर्मितान् जानीहीति
इतो विशेषः शुद्धनिश्चयेन शुद्धबुद्धैकस्वभावमात्मानं द्रव्यं जानीहि तस्यैवात्मनः सविकल्पं ज्ञानं
निर्विकल्पं दर्शनं गुण इति तत्र ज्ञानमष्टविधं केवलज्ञानं सकलमखण्डं शुद्धमिति शेषं सप्तकं
खण्डज्ञानमशुद्धमिति तत्र सप्तकमध्ये मत्यादिचतुष्टयं सम्यग्ज्ञानं कुमत्यादित्रयं मिथ्याज्ञानमिति
दर्शनचतुष्टयमध्ये केवलदर्शनं सकलमखण्डं शुद्धमिति चक्षुरादित्रयं विकलमशुद्धमिति किं च
गुणास्त्रिविधा भवन्ति केचन साधारणाः, केचनासाधारणाः, केचन साधारणासाधारणा इति
जीवस्य तावदुच्यन्ते अस्तित्वं वस्तुत्वं प्रमेयत्वागुरुलघुत्वादयः साधारणाः, ज्ञानसुखादयः स्व-
bhAvArthashuddha nishchayanayathI shuddha, buddha jeno ek svabhAv chhe evA AtmAne tun dravya
jAN. savikalpa gnAn, nirvikalpa darshanane tun te AtmAnA guNo jAN, tyAn gnAn ATh prakAranun
chhe, kevaLagnAn sakal, akhanD, shuddha chhe, bAkInA sAt khanD gnAn ashuddha chhe. te sAtamAn mati,
shrut, avadhi ane manaparyay e chAr gnAn samyaggnAn chhe. kumati, kushrut, kuavadhi e traN gnAn
mithyAgnAn chhe.
chAr darshanomAn kevaLadarshan sakal, akhanD ane shuddha chhe, chakShu, achakShu ane avadhi e
traN darshan vikal ane ashuddha chhe.
vaLI guNo traN prakAranA chhe keTalAk sAdhAraN chhe, keTalAk asAdhAraN chhe, keTalA
sAdhAraNAsAdhAraN chhe.
temAn pratham jIvanA guNo kahevAmAn Ave chhe. astitva, vastutva, prameyatva, agurulaghutva vagere
भावार्थ :इसका विशेष व्याख्यान करते हैंशुद्धनिश्चयनयकर शुद्ध, बुद्ध, अखंड,
स्वभाव, आत्माको तू द्रव्य जान, चेतनपनेके सामान्य स्वभावको दर्शन जान, और विशेषतासे
जानपना उसको ज्ञान समझ
ये दर्शन ज्ञान आत्माके निज गुण है, उनमेंसे ज्ञानके आठ भेद
हैं, उनमें केवलज्ञान तो पूर्ण है, अखंड है, शुद्ध है, तथा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान,
मनःपर्ययज्ञान ये चार ज्ञान तो सम्यक्ज्ञान और कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ये तीन मिथ्या ज्ञान,
ये केवल की अपेक्षा सातों ही खंडित हैं, अखंड, और सर्वथा शुद्ध नहीं है, अशुद्धता सहित
हैं, इसलिये परमात्मामें एक केवलज्ञान ही है
पुद्गलमें अमूर्तगुण नहीं पाये जाते, इस कारण
पाँचोंकी अपेक्षा साधारण, पुद्गलकी अपेक्षा असाधारण प्रदेशगुण कालके बिना पाँच द्रव्योंमें
पाया जाता है, इसलिये पाँचकी अपेक्षा यह प्रदेशगुण साधारण है, और कालमें न पानेसे
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yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-58