Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

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जातौ साधारणा अपि विजातौ पुनरसाधारणाः अमूर्तित्वं पुद्गलद्रव्यं प्रत्यसाधारणमाकाशादिकं
प्रति साधारणं प्रदेशत्वं पुनः कालद्रव्यं प्रति पुद्गलपरमाणुद्रव्यं च प्रत्यसाधारणं शेषद्रव्यं प्रति
साधारणमिति संक्षेपव्याख्यानम् एवं शेषद्रव्याणामपि यथासंभवं ज्ञातव्यमिति भावार्थः ।।५८।।
अथानन्तसुखस्योपादेयभूतस्याभिन्नत्वात् शुद्धगुणपर्यायप्रतिपादनमुख्यत्वेन सूत्राष्टकं
guNo sAdhAraN chhe. gnAn sukhAdi guNo svajAtimAn (arthAt jIvadravyonI apekShAe) sAdhAraN chhe
paN vijAtimAn (vijAtiy dravyonI apekShAe) asAdhAraN chhe. amUrtatva, pudgaladravya, prati
(pudgaladravyanI apekShAe) asAdhAraN chhe, AkAshAdi prati sAdhAraN chhe. vaLI pradeshapaNun kALadravya
prati ane pudgalaparamANudravya prati asAdhAraN chhe, bAkInA dravyo prati sAdhAraN chhe.
e pramANe sankShepamAn kathan karyun.
e pramANe bAkInA dravyonun kathan paN yathAsambhav samajI levun evo bhAvArtha chhe. 58.
have jemAn traN prakAranA AtmAnun kathan chhe evA pahelA mahAdhikAramAn dravya-guNaparyAyanA
vyAkhyAnanI mukhyatAthI sAtamA sthaLamAn traN dohAsUtra samApta thayAn.
have upAdeyabhUt anantasukhathI abhinna hovAthI shuddhaguNaparyAyanA kathananI mukhyatAthI
ATh sUtro kahevAmAn Ave chhe, te ATh gAthAsUtromAnthI pratham chAr sUtro karmashaktinA svarUpanI
कालकी अपेक्षा असाधारण है पुद्गलद्रव्यमें मूर्तीकगुण असाधारण है, इसीमें पाया जाता
है, अन्यमें नहीं और अस्तित्वादि गुण इसमें पाये जाते हैं, तथा अन्यमें भी, इसलिये साधारणगुण
हैं
चेतनपना पुद्गलमें सर्वथा नहीं पाया जाता पुद्गल-परमाणुको द्रव्य कहते हैं स्पर्श,
रस, गंध, वर्णस्वरूप जो मूर्ति वह पुद्गलका विशेषगुण है अन्य सब द्रव्योंमें जो उनका
स्वरूप है, वह द्रव्य है, और अस्तित्वादि गुण, तथा स्वभाव परिणति पर्याय है जीव और
पुद्गलके बिना अन्य चार द्रव्योंमें विभाव-गुण और विभाव-पर्याय नहीं है, तथा जीव पुद्गलमें
स्वभाव-विभाव दोनों हैं
उनमेंसे सिद्धोंमें तो स्वभाव ही है, और संसारीमें विभावकी मुख्यता
है पुद्गल परमाणुमें स्वभाव ही है, और स्कंध विभाव ही है इस तरह छहों द्रव्योंका संक्षेपसे
व्याख्यान जानना ।।५८।।
ऐसे तीन प्रकारकी आत्माका है कथन जिसमें ऐसे पहले महाधिकारमें द्रव्य-गुण
पर्यायके व्याख्यानकी मुख्यतासे सातवें स्थलमें तीन दोहा-सूत्र कहे आगे आदर करने योग्य
अतीन्द्रिय सुखसे तन्मयी जो निर्विकल्पभाव उसकी प्राप्तिके लिए शुद्ध गुण-पर्यायके
व्याख्यानकी मुख्यतासे आठ दोहा कहते हैं
इनमें पहले चार दोहोमें अनादि कर्मसम्बन्धका
adhikAr-1 dohA-58 ]paramAtmaprakAsha [ 103