नीचगोत्रजनितं तुच्छत्वमिति, तदुभयकारणभूतेन गोत्रकर्मोदयेन विशिष्टागुरुलघुत्वं प्रच्छाद्यत
इति । अव्याबाधगुणत्वं वेदनीयकर्मोदयेनेति संक्षेपेणाष्टगुणानां कर्मभिराच्छादनं ज्ञातव्यमिति ।
तदेव गुणाष्टकं मुक्तावस्थायां स्वकीयस्वकीयकर्मप्रच्छादनाभावे व्यक्तं भवतीति संक्षेपेणाष्टगुणाः
कथिताः । विशेषेण पुनरमूर्तत्वनिर्नामगोत्रादयः साधारणासाधारणरूपानन्तगुणाः
यथासंभवभागमाविरोधेन ज्ञातव्या इति । अत्र सम्यक्त्वादिशुद्धगुणस्वरूपः शुद्धात्मैवोपादेय इति
भावार्थः ।।६१।।
अथ विषयकषायासक्तानां जीवानां ये कर्मपरमाणवः संबद्धा भवन्ति तत्कर्मेति
कथयति —
tuchchhapaNun kahevAmAn Ave chhe. te bannenA kAraNarUp gotrakarmanA udayathI vishiShTa agurulaghutva
AchchhAdit chhe. avyAbAdhaguNapaNun vedanIyakarmanA udayathI AchchhAdit chhe. e pramANe sankShepathI
karmothI ATh guNonun AchchhAdan jANavun. te ATh guNo mukta-avasthAmAn potapotAnA karmanA
AchchhAdananA abhAvamAn vyakta thAy chhe.
e pramANe sankShepathI ATh guNo kahyA.
vaLI visheShamAn amUrtapaNun, nAmarahitapaNun gotrarahitapaNun Adi sAdhAraN-asAdhAraNarUp
anant guNo yathAsambhav AgamathI avirodhapaNe jANavA.
ahIn samyaktvAdi shuddhaguNasvarUp shuddhAtmA ja upAdey chhe evo bhAvArtha chhe. 61.
have viShayakaShAyamAn Asakta jIvone je karmaparamANuo bandhAy chhe te karma chhe em kahe
chhe —
गया है, क्योंकि गोत्रकर्मके उदयसे जब जीव नीच गोत्र पाया, तब उसमें तुच्छ या लघु
कहलाया, और उच्च गोत्रमें बड़ा अर्थात् गुरु कहलाया और वेदनीयकर्मके उदयसे अव्याबाध
गुण ढक गया, क्योंकि उसके उदय साता-असातारूप सांसारिक सुख-दुःखका भोक्ता हुआ ।
इस प्रकार आठ गुण आठ कर्मोंसे ढक गये, इसलिये यह जीव संसारमें भ्रमा । जब कर्मका
आवरण मिट जाता है, तब सिद्धपदमें ये आठ गुण प्रकट होते हैं । यह संक्षेपसे आठ गुणोंका
कथन किया । विशेषतासे अमूर्तत्व निर्नामगोत्रादिक अनंतगुण यथासम्भव शास्त्र-प्रमाणसे
जानने । तात्पर्य यह है, कि सम्यक्त्वादि निज शुद्ध गुणस्वरूप जो शुद्धात्मा है, वही उपादेय
है ।।६१।।
आगे विषय-कषायोंमें लीन जीवोंके जो कर्मपरमाणुओंके समूह बँधते हैं, वे कर्म कहे
जाते हैं, ऐसा कहते हैं —
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yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-61