Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 62 (Adhikar 1).

< Previous Page   Next Page >


Page 111 of 565
PDF/HTML Page 125 of 579

 

background image
adhikAr-1 dohA-62 ]paramAtmaprakAsha [ 111
गाथा६२
अन्वयार्थ :[विषयकषायैः ] विषय-कषायोंसे [रञ्जितानां ] रागी [मोहितानां ]
मोही जीवोंके [जीवप्रदेशेषु ] जीवके प्रदेशोंमें [ये अणवः ] जो परमाणु [लगंति ] लगते हैं,
बँधते हैं, [तान् ] उन परमाणुओंके स्कंधों (समूहों) को [जिनाः ] जिनेन्द्रदेव [कर्म ] कर्म
[भणंति ] कहते हैं
भावार्थ :शुद्ध आत्माकी अनुभूतिसे भिन्न जो विषयकषाय उनसे रँगे हुए आत्म-
ज्ञानके अभावसे उपार्जन किये हुए मोहकर्मके उदयकर परिणत हुए, ऐसे रागी, द्वेषी, मोही,
संसारी जीवोंके कर्मवर्गणा योग्य जो पुद्गलस्कंध हैं, वे ज्ञानावरणादि आठ प्रकार कर्मरूप
होकर परिणमते हैं
जैसे तेलसे शरीर चिकना होता है, और धूलि लगकर मैलरूप होके
परिणमती है, वैसे ही रागी, द्वेषी, मोही, जीवोंके विषय-कषाय-दशामें पुद्गलवर्गणा कर्मरूप
होके परिणमती हैं
जो कर्मोंका उपार्जन करते हैं, वही जब वीतराग निर्विकल्पसमाधिके समय
bhAvArthashuddha AtmAnI anubhUtithI vilakShaN viShayakaShAyathI rakta ane svasamvedananA
abhAvathI upArjit karelA evA mohakarmanA udayarUpe pariNamelA jIvone karmavargaNA yogya skandho,
jevI rIte telathI lepAyel sharIramAn dhUL lAgIne melaparyAyarUp pariName chhe tevI rIte, aShTavidh
gnAnAvaraNAdi karmarUpe pariName chhe evo artha chhe.
ahIn je viShayakaShAyanA kALe karmanun upArjan kare chhe te paramAtmA vItarAg nirvikalpa
६२) विसय-कसायहिँ रंगियहँ ते अणुया लग्गंति
जीव-पएसेहँ मोहियहँ ते जिण कम्म भणंति ।।६२।।
विषयकषायैः रञ्जितानां ये अणवः लगन्ति
जीवप्रदेशेषु मोहितानां तान् जिनाः कर्म भणन्ति ।।६२।।
विसयकसायहिं रंगियहं जे अणुया लग्गंति विषयकषायै रंगितानां रक्तानां ये परमाणवो
लग्ना भवन्ति जीवपएसिहिं मोहियहं ते जिण कम्म भणंति केषु लग्ना भवन्ति
जीवप्रदेशेषु केषाम् मोहितानां जीवानाम् तान् कर्मस्कन्धान् जिनाः कर्मेति कथयन्ति
तथाहि शुद्धात्मानुभूतिविलक्षणैर्विषयकषायै रक्तानां स्वसंवित्त्यभावोपार्जितमोहकर्मोदयपरिणतानां
च जीवानां कर्मवर्गणायोग्यस्कन्धास्तैलम्रक्षितानां मलपर्यायवदष्टविधज्ञानावरणादिकर्मरूपेण
परिणमन्तीत्यर्थः
।। अत्र य एव विषयकषायकाले कर्मोपार्जनं करोति स एव परमात्मा
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिकाले साक्षादुपादेयो भवतीति तात्पर्यार्थः ।।६२।। इति कर्मस्वरूप-