Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 113 of 565
PDF/HTML Page 127 of 579

 

background image
adhikAr-1 dohA-63 ]paramAtmaprakAsha [ 113
-अशुभ संकल्प-विकल्पसे रहित आत्मासे विपरीत अनेक संकल्प-विकल्पसमूहरूप जो मन
और शुद्धात्मतत्त्वकी अनुभूतिसे भिन्न जो राग, द्वेष, मोहादिरूप सब विभाव ये सब आत्मासे
जुदे हैं, तथा वीतराग परमानन्दसुखरूप अमृतसे पराङ्मुख जो समस्त चतुर्गतिके महान
दुःखदायी दुःख वे सब जीवपदार्थसे भिन्न हैं
ये सभी अशुद्धनिश्चयनयकर आत्म-ज्ञानके
अभावसे उपार्जन किये हुए कर्मोंसे जीवके उत्पन्न हुए हैं इसलिये ये सब अपने नहीं हैं,
कर्मजनित हैं यहाँ पर परमात्म-द्रव्यसे विपरीत जो पाँचों इन्द्रियोंको आदि लेकर सब
विकल्प-जाल हैं, वे तो त्यागने योग्य हैं, उससे विपरीत पाँचों इन्द्रियोंके विषयोंकी
अभिलाषाको आदि लेकर सब विकल्प-जालोंसे रहित अपना शुद्धात्मतत्त्व वही परमसमाधिके
समय साक्षात् उपादेय है
यह तात्पर्य जानना ।।६३।।
आगे संसारके सब सुख-दुःख शुद्ध निश्चयनयसे शुभ-अशुभ कर्मोंकर उत्पन्न होते हैं,
और कर्मोंको ही उपजाते हैं, जीवके नहीं है, ऐसा कहते हैं
vikalpathI rahit AtmAthI viparIt anek sankalpa vikalpanI jALarUp je man ane shuddha AtmAnI
anubhUtithI vilakShaN je samasta vibhAvaparyAyo ane je vItarAg paramAnandarUp sukhAmRutathI pratikUL
chAragatinA samasta santApo
dukhanA dAho e sarva ashuddha nishchayanayathI svasamvedananA abhAvathI
upArjelA karmathI jIvone utpanna thayAn chhe.
ahIn, paramAtmadravyathI pratikUL je panchendriyAdi samasta vikalpajAL chhe te hey chhe, tenAthI
viparIt panchendriy viShayanI abhilAShAdi samasta vikalpathI rahit evun svashuddhAtmatattva param
samAdhinA samaye sAkShAt upAdey chhe, evo bhAvArtha chhe. 63.
have, shuddha nishchayanayathI jIvonA sAnsArik samasta sukh-dukhone karma utpanna kare chhe. em
kahe chhe
जनिता हे जीव, न केवलमेते अन्यदपि पुनरपि चतुर्गतिसंतापास्ते कर्मजनिता इति तद्यथा
अतीन्द्रियात् शुद्धात्मनो यानि विपरीतानि पञ्चेन्द्रियाणि, शुभाशुभसंकल्पविकल्परहितात्मनो यद्
विपरीतमनेकसंकल्पविकल्पजालरूपं मनः, ये च शुद्धात्मतत्त्वानुभूतेर्विलक्षणाः समस्तविभाव-
पर्यायाः, वीतरागपरमानन्दसुखामृतप्रतिकूलाः समस्तचतुर्गतिसंतापाः दुःखदाहाश्चेति सर्वेऽप्येते
अशुद्धनिश्चयनयेन स्वसंवेद्याभावोपार्जितेन कर्मणा निर्मिता जीवानामिति
अत्र परमात्म-
द्रव्यात्प्रतिकूलं यत्पञ्चेन्द्रियादिसमस्तविकल्पजालं तद्धेयं तद्विपरीतं स्वशुद्धात्मतत्त्वं पञ्चेन्द्रिय-
विषयाभिलाषादिसमस्तविकल्परहितं परमसमाधिकाले साक्षादुपादेयमिति भावार्थः
।।६३।।
अथ सांसारिकसमस्तसुखदुःखानि शुद्धनिश्चयनयेन जीवानां कर्म जनयतीति
निरूपयति