Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 64 (Adhikar 1).

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114 ]
yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-64
गाथा६४
अन्वयार्थ :[जीवानां ] जीवोंके [बहुविधं ] अनेक तरहके [दुःखमपि सुखं अपि ]
दुःख और सुख दोनों ही [कर्म ] कर्म ही [जनयति ] उपजाता है [आत्मा ] और आत्मा
[पश्यति ] उपयोगमयी होनेसे देखता है, [परं मनुते ] और केवल जानता है, [एवं ] इस प्रकार
[निश्चयः ] निश्चयनय [भणति ] कहता है, अर्थात् निश्चयनयसे भगवान्ने ऐसा कहा है
भावार्थ :आकु लता रहित पारमार्थिक वीतराग सुखसे पराङ्मुख (उलटा) जो
संसारके सुख-दुःख यद्यपि अशुद्ध निश्चयनयकर जीव सम्बन्धी है, तो भी शुद्ध निश्चयनयकर
जीवने उपजाये नहीं हैं, इसलिये जीवके नहीं हैं, कर्म-संयोगकर उत्पन्न हुए हैं और आत्मा तो
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें स्थिर हुआ वस्तुको वस्तुके स्वरूप देखता है, जानता है,
रागादिकरूप नहीं होता, उपयोगरूप है, ज्ञाता द्रष्टा है, परम आनंदरूप है
यहाँ पारमार्थिक
सुखसे उलटा जो इन्द्रियजनित संसारका सुख-दुःख आदि विकल्प समूह है वह त्यागने योग्य
bhAvArthaanAkuLatA jenun lakShaN chhe evA pAramArthik vItarAg sukhathI pratikUL
sAnsArik sukh-dukh jo ke ashuddha nishchayanayathI jIvajanit chhe topaN shuddha nishchayanayathI karmajanit
chhe, ane AtmA vItarAg nirvikalpa samAdhistha thayelo, vastune vastusvarUpe dekhe-jANe chhe paN
rAgAdi karato nathI.
ahIn, pAramArthik sukhathI viparIt sAnsArik sukh-dukharUp vikalpajAL hey chhe, evo
६४) दुक्खु वि सुक्खु वि बहुविहउ जीवहँ कम्मु जणेइ
अप्पा देक्खइ मुणइ पर णिच्छउ एउँ भणेइ ।।६४।।
दुःखमपि सुखमपि बहुविधं जीवानां कर्म जनयति
आत्मा पश्यति मनुते परं निश्चयः एवं भणति ।।६४।।
दुक्खु वि सुक्खु वि बहुविहउ जीवहं कम्मु जणेइ दुःखमपि सुखमपि कथंभूतम्
बहुविधं जीवानां कर्म जनयति अप्पा देक्खइ मुणइ पर णिच्छउ एउं भणेइ आत्मा पुनः
पश्यति जानाति परं नियमेन निश्चयनयः एवं ब्रुवते इति तथाहिअनाकुल-
त्वलक्षणपारमार्थिकवीतरागसौख्यात् प्रतिकूलं सांसारिकसुखदुःखं यद्यप्यशुद्धनिश्चयनयेन जीवजनितं
तथापि शुद्धनिश्चयेन कर्मजनितं भवति
आत्मा पुनर्वीतरागनिर्विकल्पसमाधिस्थः सन् वस्तु
वस्तुस्वरूपेण पश्यति जानाति च न च रागादिकं करोति अत्र पारमार्थिकसुखाद्विपरीतं