Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 65 (Adhikar 1).

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adhikAr-1 dohA-65 ]paramAtmaprakAsha [ 115
है, ऐसा भगवान्ने कहा है, यह तात्पर्य है ।।६४।।
आगे निश्चयनयकर बन्ध और मोक्ष कर्मजनित ही है, कर्मके योगसे बन्ध और कर्मके
वियोगसे मोक्ष है, ऐसा कहते हैं
गाथा६५
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव [बंधमपि ] बंधको [मोक्षमपि ] और मोक्षको
[सकलं ] सबको [जीवानां ] जीवोंके [कर्म ] कर्म ही [जनयति ] करता है, [आत्मा ] आत्मा
[किमपि ] कुछ भी [नैव करोति ] नहीं करता, [निश्चयः ] निश्चयनय [एवं ] ऐसा [भणति ]
कहता है, अर्थात् निश्चयनयसे भगवान्ने ऐसा कहा है
भावार्थ :अनादि कालकी संबंधवाली अयथार्थस्वरूप अनुपचरितासद्भूत-
व्यवहारनयसे ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मबंध और अशुद्धनिश्चयनयसे रागादि भावकर्मके बंधको तथा
दोनों नयोंसे द्रव्यकर्म भावकर्मकी मुक्तिको यद्यपि जीव करता है, तो भी शुद्धपारिणामिक
tAtparyArtha chhe. 64.
have, nishchayanayathI bandhamokSha karma kare chhe, em kahe chhe
bhAvArthaanupacharit asadbhUt vyavahAranayathI dravyabandh temaj ashuddha
nishchayanayathI bhAvabandh tathA banne nayothI dravyabhAvarUp mokShane paN jo ke jIv kare chhe topaN
shuddha pAriNAmik paramabhAvagrAhak shuddhanishchayanayathI karato ja nathI, em nishchayanay kahe chhe.
सांसारिकसुखदुःखविकल्पजालं हेयमिति तात्पर्यार्थः ।।६४।।
अथ निश्चयेन बंधमोक्षौ कर्म करोतीति प्रतिपादयति
६५) बंधु वि मोक्खु वि सयलु जिय जीवहँ कम्मु जणेइ
अप्पा किंपि वि कुणइ णवि णिच्छउ एउँ भणेइ ।।६५।।
बन्धमपि मोक्षमपि सकलं जीव जीवानां कर्म जनयति
आत्मा किमपि करोति नैव निश्चय एवं भणति ।।६५।।
बंधु वि मोक्खु वि सयलु जिय जीवहं कम्मु जणेइ बन्धमपि मोक्षमपि समस्तं हे जीव
जीवानां कर्म कर्तृ जनयति अप्पा किंपि [किंचि] वि कुणइ णवि णिच्छउ एउं भणेइ आत्मा
किमपि न करोति बन्धमोक्षस्वरूपं निश्चय एवं भणति
तद्यथा अनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण
द्रव्यबन्धं तथैवाशुद्धनिश्चयेन भावबन्धं तथा नयद्वयेन द्रव्यभावमोक्षमपि यद्यपि जीवः करोति