Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

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sUtro chhe, (3) tyArapachhI paramAtmaprakAsh nAmanI mukhyatAthI ‘‘सयलहं कम्महं दोसहं’’ ityAdi
traN sUtro chhe, (4) pachhI siddhapadanI mukhyatAthI ‘‘झाणें कम्मक्खउ करिवि’’ ityAdi traN
sUtro chhe, (5) tyArapachhI paramAtmaprakAshanA ArAdhak puruShonA phaLanA kathananI mukhyatAthI
‘‘जे परमप्पपयासु मुणि’’ ityAdi traN sUtro chhe, (6) tyArapachhI paramAtmaprakAshanI ArAdhanAne
yogya puruShonA kathananI mukhyatAthI ‘जे भवदुक्खहं’ ityAdi traN sUtro chhe, (7) tyArapachhI
paramAtmaprakAshashAstranA phaLanA kathananI mukhyatAthI ane uddhatapaNAnA (garvanA) tyAganI mukhyatAthI
‘लक्खणछंद’ ityAdi traN sUtro chhe.
e pramANe chovIsh dohak sUtronI ek chUlikAnA antamAn sAt sthaLo samApta thayAn.
(e rIte te mahAdhikAromAn antar sthaL anek chhe. ) e rIte prathamapAtanikA
samApta thaI, (e rIte paripATIno ek kram kahyo.) athavA anya prakAre bIjI pAtanikA
kahevAmAn Ave chhe. te A pramANe
pahelA adhikAramAn pratham to prakShepak sUtrone chhoDIne
bahirAtmA, antarAtmA, ane paramAtmAnA kathanarUpe ekasotrevIs sUtro sudhI vyAkhyAn
परमात्मप्रकाशनाममुख्यत्वेन ‘सयलहं कम्महं दोसहं’ इत्यादि सूत्रत्रयम्, अथ सिद्धपदमुख्यत्वेन
‘झाणें कम्मक्खउ करिवि’ इत्यादि सूत्रत्रयं, तदनन्तरं परमात्मप्रकाशाराधकपुरुषाणां
फलकथनमुख्यत्वेन
‘जे परमप्पपयासु मुणि’ इत्यादिसूत्रत्रयम्, अत ऊर्ध्वं
परमात्मप्रकाशाराधनायोग्यपुरुषकथनमुख्यत्वेन ‘जे भवदुक्खहं’ इत्यादिसूत्रत्रयम्’ अथानन्तरं
परमात्मप्रकाशशास्त्रफलकथनमुख्यत्वेन तथैवौद्धत्यपरिहारमुख्यत्वेन च
‘लक्खणछंद’ इत्यादि
सूत्रत्रयम्
इति चतुर्विंशतिदोहकसूत्रैकचूलिकावसाने सप्त स्थलानि गतानि एवं प्रथमपातनिका
समाप्ता अथवा प्रकारान्तरेण द्वितीया पातनिका कथ्यते तद्यथा
प्रथमतस्तावद्बहिरात्मान्तरात्मपरमात्मकथनरूपेण प्रक्षेपकान् विहाय त्रयोविंशत्यधिक-
6 ]
yogIndudevavirachita
[ pAtanikA
तीन दोहे, परमात्मप्रकाशनामकी मुख्यताकर ‘सयलहं दोसहं’ इत्यादि तीन दोहे, सिद्धपदकी
मुख्यताकर ‘झाणें कम्मक्खउ करिवि’ इत्यादि तीन दोहे, परमात्मप्रकाशके आराधक पुरुषोंको
फलके कथनकी मुख्यताकर ‘जे परमप्पपयास मुणि’ इत्यादि तीन दोहे, परमात्मप्रकाशकी
आराधनाके योग्य पुरुषोंके कथनकी मुख्यताकर ‘जो भवदुक्खहं’ इत्यादि तीन दोहे, और
परमात्मप्रकाशशास्त्रके फलके कथनकी मुख्यताकर तथा गर्वके त्यागकी मुख्यताकर ‘लक्खण
छंद’ इत्यादि तीन दोहे हैं
इस प्रकार चूलिकाके अंतमें चौबीस दोहोंमें सात स्थल कहे गये
हैं इस तरह तीन महाअधिकारोंमें अंतर स्थल अनेक हैं एक तो इस प्रकार पातनिका कही,
अथवा अन्य तरह कथनकर दूसरी पातनिका कहते हैपहले अधिकारमें बहिरात्मा, अंतरात्मा