Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 15 (Adhikar 1) Paramatmana Lakshan.

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chhe te paramAtmA chhe em kahe chhe
bhAvArthajeNe deh, rAgAdik samasta paradravyane chhoDIne gnAnAvaraNAdi dravyakarma,
bhAvakarma rahit vartatA thakA kevaLagnAnathI rachAyel, AtmAne prApta karyo chhe teneevA AtmAne
-paramAtmAne he prabhAkarabhaTTa! tun mAyA, mithyAtva, nidAn, e traN shalyanA svarUpathI mAnDIne
samastavibhAvapariNAm rahit man vaDe jAN. ahIn uktalakShaNayukta paramAtmA upAdey chhe, ane
परमात्मा भवतीति कथयति
१५) अप्पा लद्धउ णाणमउ कम्मविमुक्केँ जेण
मेल्लिवि सयलु वि दव्वु परु सो परु मुणहि मणेण ।।१५।।
आत्मा लब्धो ज्ञानमयः कर्मविमुक्ते न येन
मुक्त्वा सकलमपि द्रव्यं परं तं परं मन्यस्व मनसा ।।१५।।
अप्पा लद्धउ णाणमउ कम्मविमुक्कें जेण आत्मा लब्धः प्राप्तः किंविशिष्टः ज्ञानमयः
केवलज्ञानेन निर्वृत्तः कथंभूतेन सता ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मभावकर्मरहितेन येन किं कृत्वात्मा
लब्धः मेल्लिवि सयलु वि दव्वु परु सो परु मुणहि मणेण मुक्त्वा परित्यज्य किम् परं
द्रव्यं देहरागादिकम् सकलं कतिसंख्योपेतं समस्तमपि तमित्थंभूतमात्मानं परं परमात्मानमिति
मन्यस्व जानीहि हे प्रभाकरभट्ट केन कृत्वा मायामिथ्यानिदानशल्यत्रयस्वरूपादिसमस्तविभाव-
परिणामरहितेन मनसेति अत्रोक्त लक्षणपरमात्मा उपादेयो ज्ञानावरणादिसमस्तविभावरूपं परद्रव्यं
adhikAr-1 dohA-15 ]paramAtmaprakAsha [ 39
लिया है, वही परमात्मा है, ऐसा कहते हैं
गाथा१५
अन्वयार्थ :[येन ] जिसने [कर्मविमुक्तेन ] ज्ञानावरणादि कर्मोंका नाश करके
[सकलमपि परं द्रव्यं ] और सब देहादिक परद्रव्योंको [मुक्त्वा ] छोड़ करके [ज्ञानमयः ]
केवलज्ञानमयी [आत्मा ] आत्मा [लब्धः ] पाया है, [तं ] उसको [मनसा ] शुद्ध मनसे [परं ]
परमात्मा [मन्यस्व ] जानो
भावार्थ :जिसने देहादिक समस्त परद्रव्यको छोड़कर ज्ञानावरणादि, द्रव्यकर्म,
रागादिक भावकर्म, शरीरादि नोकर्म इन तीनोंसे रहित केवलज्ञानमयी अपने आत्माका लाभ कर
लिया है, ऐसे आत्माको हे प्रभाकरभट्ट, तू माया, मिथ्या, निदानरूप शल्य वगैरह समस्त विभाव
(विकार) परिणामोंसे रहित निर्मल चित्तसे परमात्मा जान, तथा केवलज्ञानादि गुणोंवाला