Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

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bhAvArthaje koI vItarAg nirvikalpa sahaj AnandarUp ek (kevaL) shuddhAtmAnubhUti
jenun lakShaN chhe evI paramasamAdhimAn sthit thayo thako, anupacharit asadbhUt vyavahAranayathI
dehathI abhinna ane nishchayanayathI dehathI bhinna, gnAnamay kevaLagnAnathI rachAyel paramAtmAne jANe
chhe, te ja panDit-vivekI antarAtmA chhe
1‘‘कः पण्डितो विवेकी’’ ‘‘इति वचनात्’’ (artha‘‘panDit
koN? to ke je vivekI chhe,’’) evun Agamanun vachan chhe.
e pramANe antarAtmA heyarUp chhe, je paramAtmA chhe te ja sAkShAt upAdey chhe evo
bhAvArtha chhe. 14.
have samasta paradravyane chhoDIne jeNe kevaLagnAnamay, karmarahit shuddha AtmAne prApta karyo
देहविभिन्नं ज्ञानमयं यः परमात्मानं पश्यति
परमसमाधिपरिस्थितः पण्डितः स एव भवति ।।१४।।
देहविभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ अनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयेन देहादभिन्नं
निश्चयनयेन भिन्नं ज्ञानमयं केवलज्ञानेन निर्वृत्तं परमात्मानं योऽसौ जानाति परमसमाहिपरिट्ठियउ
पंडिउ सो जि हवेइ वीतरागनिर्विकल्पसहजानन्दैकशुद्धात्मानुभूतिलक्षणपरमसमाधिस्थितः सन्
पण्डितोऽन्तरात्मा विवेकी स एव भवति
‘‘कः पण्डितो विवेकी’’ इति वचनात्, इति
अन्तरात्मा हेयरूपो, योऽसौ परमात्मा भणितः स एव साक्षादुपादेय इति भावार्थः ।।१४।।
अथ समस्तपरद्रव्यं मुक्त्वा केवलज्ञानमयकर्मरहितशुद्धात्मा येन लब्धः स
38 ]
yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-14
1. amodh varSha, prashnottaramAlA 5
गाथा१४
अन्यवयार्थ [यः ] जो पुरुष [परमात्मानं ] परमात्माको [देहविभिन्नं ] शरीरसे जुदा
[ज्ञानमयं ] केवलज्ञानकर पूर्ण [पश्यति ] जानता है, [स एव ] वही [परमसमाधिपरिस्थितः ]
परमसमाधिमें तिष्ठता हुआ [पण्डितः ] अन्तरात्मा अर्थात् विवेकी [भवति ] है
भावार्थ :यद्यपि अनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयसे अर्थात् इस जीवके परवस्तुका
संबंध अनादिकालका मिथ्यारूप होनेसे व्यवहारनयकर देहमयी है, तो भी निश्चयनयकर सर्वथा
देहादिकसे भिन्न है, और केवलज्ञानमयी है, ऐसा निज शुद्धात्माको वीतरागनिर्विकल्प सहजानंद
शुद्धात्माकी अनुभूतिरूप परमसमाधिमें स्थित होता हुआ जानता है, वही विवेकी अंतरात्मा
कहलाता है
वह परमात्मा ही सर्वथा आराधने योग्य है, ऐसा जानना ।।१४।।
आगे सब पररव्योंको छोड़कर कर्मरहित होकर जिसने अपना स्वरूप केवलज्ञानमय पा