Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 22 (Adhikar 1).

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manDal, mudrAdik kahyAn chhe teno nirdoSh paramAtmAnI ArAdhanArUp dhyAnamAn niShedh kare
chhe
bhAvArthaatIndriy sukhanA AsvAdathI viparIt jihvendriyanA viShayane, nirmoh shuddha
AtmasvabhAvathI pratikUL mohane, vItarAg sahajAnandarUp paramasamarasIbhAvasvarUp sukharasanA
anubhavathI pratipakSha nav prakAranA abrahmacharyavratane (kushIlane) ane vItarAg nirvikalpa samAdhinA
यत्तन्निर्दोषपरमात्माराधनाध्याने निषेधयन्ति
२२) जाणु ण धारणु धेउ ण वि जासु ण जंतु ण मंतु
जासु ण मंडलु मुद्द ण वि सो मुणि देउँ अणंतु ।।२२।।
यस्य न धारणा ध्येयं नापि यस्य न यन्त्रं न मन्त्रः
यस्य न मण्डलं मुद्रा नापि तं मन्यस्व देवमनन्तम् ।।२२।।
यस्य परमात्मनो नास्ति न विद्यते किं किम् कुम्भकरेचकपूरकसंज्ञावायुधारणादिकं
प्रतिमादिकं ध्येयमिति पुनरपि किं किं तस्य अक्षररचनाविन्यासरूपस्तम्भनमोहनादिविषयं
यन्त्रस्वरूपं विविधाक्षरोच्चारणरूपं मन्त्रस्वरूपं च अपमण्डलवायुमण्डलपृथ्वीमण्डलादिकं गारुड-
मुद्राज्ञानमुद्रादिकं च यस्य नास्ति तं परमात्मानं देवमाराध्यं द्रव्यार्थिकनयेनानन्तमविनश्वरमनन्त-
adhikAr-1 dohA-22 ]paramAtmaprakAsha [ 47
शास्त्रमें कहे गए हैं, उन सबका निर्दोष परमात्माकी आराधनारूप ध्यानमें निषेध किया है
गाथा२२
अन्वयार्थ :[यस्य ] जिस परमात्माके [धारणा न ] कुंभक, पूरक, रेचक
नामवाली वायुधारणादिक नहीं है, [ध्येयं नापि ] प्रतिमा आदि ध्यान करने योग्य पदार्थ भी
नहीं है, [यस्य ] जिसके [यन्त्रः न ] अक्षरोंकी रचनारूप स्तंभन मोहनादि विषयक यंत्र नहीं
है, [मन्त्रः न ] अनेक तरहके अक्षरोंके बोलनेरूप मंत्र नहीं है, [यस्य ] और जिसके [मण्डलं
न ] जलमंडल, वायुमंडल, अग्निमंडल, पृथ्वीमंडलादिक पवनके भेद नहीं हैं, [मुद्रा न ]
गारुडमुद्रा, ज्ञानमुद्रा आदि मुद्रा नहीं हैं, [तं ] उसे [अनन्तम् ] द्रव्यार्थिकनयसे अविनाशी तथा
अनंत ज्ञानादिगुणरूप [देवम् मन्यस्व ]
परमात्मदेव जानो
भावार्थ :अतीन्द्रिय आत्मीक-सुखके आस्वादसे विपरीत जिह्वाइंद्रीके विषय
(रस) को जीतके निर्मोह शुद्ध स्वभावसे विपरीत मोहभावको छोड़कर और वीतराग सहज
आनंद परम समरसीभाव सुखरूपी रसके अनुभवका शत्रु जो नौ तरहका कुशील उसको