ghAtak mananA sankalpavikalpanI jALane jItIne he prabhAkarabhaTTa! tun shuddha AtmAno anubhav kar
evo bhAvArtha chhe. kahyun paN chhe ke —
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अक खाण रसणी कम्माण मोहणी तह वयाण बंभं च । गुत्तीसु य मणगुत्ती चउरो दुक्खेहिं
सिज्झंति ।।
artha — indriyomAn jIbh prabaL chhe, gnAnAvaraNAdi ATh karmomAn mohanIy baLavAn chhe,
tathA pAnchamahAvratomAn brahmacharyavrat prabaL chhe ane traN guptiomAn manogupti pALavI kaThaN chhe;
e chAre bhAvo mushkelIthI siddha thAy chhe. 22.
have ved, shAstra indriyAdi paradravyanA avalambanane agochar ane vItarAg nirvikalpa
samAdhine gochar paramAtmAnun svarUp kahe chhe —
ज्ञानादिगुणस्वभावं च मन्यस्व जानीहि । अतीन्द्रियसुखास्वादविपरीतस्य जिह्वेन्द्रियविषयस्य
निर्मोहशुद्धात्मस्वभावप्रतिकूलस्य मोहस्य वीतरागसहजानन्दपरमसमरसीभावसुखरसानुभवप्रतिपक्षस्य
नवप्रकाराब्रह्मव्रतस्य वीतरागनिर्विकल्पसमाधिघातकस्य मनोगतसंकल्पविकल्पजालस्य च विजयं
कृत्वा हे प्रभाकरभट्ट शुद्धात्मानमनुभवेत्यर्थः । तथा चोक्त म् — ‘‘अक्खाण रसणी कम्माण मोहणी
तह वयाण बंभं च । गुत्तिसु य मणगुत्ती चउरो दुक्खेहिं सिज्झंति ।।’’ ।।२२।।
अथ वेदशास्त्रेन्द्रियादिपरद्रव्यालम्बनाविषयं च वीतरागनिर्विकल्पसमाधिविषयं च
परमात्मानं प्रतिपादयन्ति —
२३) वेयहिँ सत्थहिँ इंदियहिँ जो जिय मुणहु ण जाइ ।
णिम्मल – झाणहँ जो विसउ सो परमप्पु अणाइ ।।२३।।
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yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-22
1. anagAr dharmAmRut pRu. 262, hindI pRu. 403
तथा निर्विकल्पसमाधिके घातक मनके संकल्प विकल्पोंको त्यागकर हे प्रभाकर भट्ट, तू
शुद्धात्माका अनुभव कर । ऐसा ही दूसरी जगह भी कहा है — ‘‘अक्खाणेति’’ इसका आशय
इस तरह है, कि इन्द्रियोंमें जीभ प्रबल होती है, ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंमें मोह कर्म बलवान
होता है, पाँच महाव्रतोंमें ब्रह्मचर्य व्रत प्रबल है, और तीन गुप्तियोंमेंसे मनोगुप्ति पालना कठिन
है । ये चार बातें मुश्किलसे सिद्ध होती हैं ।।२२।।
आगे वेद, शास्त्र, इन्द्रियादि परद्रव्योंके अगोचर और वीतराग निर्विकल्प समाधिके
गोचर (प्रत्यक्ष) ऐसे परमात्माका स्वरूप कहते हैं —