Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (iso15919 transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
śrī digaṁbar jain svādhyāyamaṁdir ṭrasṭa, sonagaḍh - 364250
gayā pachī jagat śūnya thāy che tyāre sadāśivane jagat racavānī ciṁtā thāy che. tyār pachī
te muktiprāpta jīvone karmarūp aṁjanano saṁyog karīne saṁsāramāṁ nākhe che em naiyāyiko kahe
che. tenā matane anusaranār śiṣya prati bhāvakarma, dravyakarma ane nokarmarūp aṁjananā niṣedh arthe
mukta jīvone ‘niraṁjan’ viśeṣaṇ āpavāmāṁ āvyuṁ che, (3) jevī rīte supta avasthāmāṁ puruṣane
bāhya jñeyaviṣayanuṁ jñān hotuṁ nathī tevī rīte mukta ātmāone bāhya jñeyaviṣayanuṁ jñān hotuṁ
nathī em sāṁkhyo kahe che. tenā matane anusaranār śiṣya prati traṇe jagatanā, traṇe kāḷavartī sarva
तन्मतानुसारिशिष्यं प्रति भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्माञ्जननिषेधार्थं मुक्त जीवानां निरञ्जनविशेषणं
कृतम्
मुक्त ात्मनां सुप्तावस्थाबद्बहिर्ज्ञेयविषये परिज्ञानं नास्तीति सांख्या वदन्ति,
तन्मतानुसारिशिष्यं प्रति जगत्त्रयकालत्रयवर्तिसर्वपदार्थयुगपत्परिच्छित्तिरूपकेवलज्ञान-
स्थापनार्थं ज्ञानमय-विशेषणं कृतमिति
तानित्थंभूतान् परमात्मनो नत्वा प्रणम्य नमस्कृत्येति
क्रियाकारक संबन्धः अत्र नत्वेति शब्दरूपो वाचनिको द्रव्यनमस्कारो ग्राह्योऽसद्भूतव्यवहार-
12 ]yogīndudevaviracit: [ adhikār-1 : dohā-1
हैं ? वे भगवान सिद्ध परमेष्ठी नित्य निरंजन ज्ञानमई हैं यहाँपर नित्य जो विशेषण किया है,
वह एकान्तवादी बौद्ध जो कि आत्माको नित्य नहीं मानता, क्षणिक मानता है, उसको
समझानेके लिये है
द्रव्यार्थिकनयकर आत्माको नित्य कहा है, टंकोत्कीर्ण अर्थात् टाँकीक ासा
घडया सुघट ज्ञायक एकस्वभाव परम द्रव्य है ऐसा निश्चय करानेके लिये नित्यपनेका निरूपण
किया है इसके बाद निरंजनपनेका कथन करते हैं जो नैयायिकमती हैं वे ऐसा कहते हैं
‘‘सौ कल्पकाल चले जानेपर जगत् शून्य हो जाता है और सब जीव उस समय मुक्त हो जाते
हैं तब सदाशिवको जगत्के करनेकी चिन्ता होती है
उसके बाद जो मुक्त हुए थे, उन सबके
कर्मरूप अंजनका संयोग करके संसारमें पुनः डाल देता है’’, ऐसी नैयायिकोंके श्रद्धा है
उनके सम्बोधनेके लिये निरंजनपनेका वर्णन किया कि भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्मरूप अंजनका
संसर्ग सिद्धोंके कभी नहीं होता
इसी लिये सिद्धोंको निरंजन ऐसा विशेषण कहा है अब
सांख्यमती कहते हैं‘जैसे सोनेकी अवस्थामें सोते हुए पुरुषको बाह्य पदार्थोंका ज्ञान नहीं
होता, वैसे ही मुक्तजीवोंको बाह्य पदार्थोंका ज्ञान नहीं होता है ’’ ऐसे जो सिद्धदशामें ज्ञानका
अभाव मानते है, उनको प्रतिबोध करानेके लिये तीन जगत् तीनकालवर्ती सब पदार्थोंका एक
समयमें ही जानना है, अर्थात् जिसमें समस्त लोकालोकके जाननेकी शक्ति है, ऐसे
ज्ञायकतारूप केवलज्ञानके स्थापन करनेके लिये सिद्धोंका ज्ञानमय विशेषण किया
वे भगवान
नित्य हैं, निरंजन हैं, और ज्ञानमय हैं, ऐसे सिद्धपरमात्माओंको नमस्कार करके ग्रंथका व्याख्यान
करता हूँ
यह नमस्कार शब्दरूप वचन द्रव्यनमस्कार है और केवलज्ञानादि अनंत