Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
śrī digaṁbar jain svādhyāyamaṁdir ṭrasṭa, sonagaḍh - 364250
ke ‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु ।’’ (artha: — paramārthanayathī sadā śivane namaskār ho.)
vaḷī kahyuṁ paṇ che ke — ‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् । प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ (artha: — je śivarūp, paramakalyāṇarūp, nirvāṇarūp, śāṁt, akṣay che ane jeṇe
muktipad prāpta karyuṁ che te śiv che.) ‘‘ek jagatkartā, sarvavyāpī, sadā mukta, śāṁt, śiv
che’’ em anya koīpaṇ māne che, paṇ em nathī.
ahīṁ ā ja śāṁt śivasaṁjñāvāḷo śuddha ātmā ja upādey che evo bhāvārtha
che. 18.
have pūrvokta niraṁjanasvarūpane traṇ sūtrothī pragaṭ kare che : —
शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन शक्ति रूपेणेति । तथा चोक्त म् — ‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु’’ ।
पुनश्चोक्त म् — ‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् । प्राप्तं मुक्ति पदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ अन्यः कोऽप्येको जगत्कर्ता व्यापी सदा मुक्त : शान्तः शिवोऽस्तीत्येवं न ।
अत्रायमेव शान्तशिवसंज्ञः शुद्धात्मोपादेय इति भावार्थः ।।१८।।
अथ पूर्वोक्तं निरञ्जनस्वरूपं सूत्रत्रयेण व्यक्त ीकरोति —
१९) जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सद्दु ण फ ासु ।
जासु ण जम्मणु मरणु णवि णाउ णिरंजणु तासु ।।१९।।
२०) जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु ।
जासु ण ठाणु ण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ।।२०।।
२१) अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ ।
अत्थि ण एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ।।२१।। तियलं ।
44 ]yogīndudevaviracit: [ adhikār-1 : dohā-19-21
हैं, व्यक्तिरूपसे नहीं है । ऐसा कथन अन्य ग्रंथोंमें भी कहा है — ‘शिवमित्यादि’ अर्थात्
परमकल्याणरूप, निर्वाणरूप, महाशांत अविनश्वर ऐसे मुक्ति-पदको जिसने पा लिया है, वही
शिव है, अन्य कोई, एक जगत्कर्ता सर्वव्यापी सदा मुक्त शांत नैयायिकोंका तथा वैशेषिक
आदिका माना हुआ नहीं है । यह शुद्धात्मा ही शांत है, शिव है, उपादेय है ।।१८।।
आगे पहले कहे हुए निरंजनस्वरूपको तीन दोहा-सूत्रोंसे प्रगट करते हैं —