Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (iso15919 transliteration). Gatha-28 (Adhikar 1).

< Previous Page   Next Page >


Page 55 of 565
PDF/HTML Page 69 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
śrī digaṁbar jain svādhyāyamaṁdir ṭrasṭa, sonagaḍh - 364250
जाणहि जोइया देहि वसंतु ण काइं तं नित्यानन्दैकस्वभावं स्वात्मानं परमोत्कृष्टं किं न जानासि
हे योगिन्
कथंभूतमपि स्वदेहे वसन्तमपीति अत्र स एवोपादेय इति भावार्थः ।।२७।।
अथ ऊर्ध्वं प्रक्षेपपञ्चकं कथयन्ति तद्यथा
२८) जित्थु ण इंदिय-सुह-दुहइँ जित्थु ण मण-वावारु
सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ अण्णु परिं अवहारु ।।२८।।
यत्र नेन्द्रियसुखदुःखानि यत्र न मनोव्यापारः
तं आत्मानं मन्यस्व जीव त्वं अन्यत्परमपहर ।।२८।।
जित्थु ण इंदियसुहदुहइं जित्थु ण मणवावारु यत्र शुद्धात्मस्वरूपे न सन्ति न
utkr̥ṣṭa, nitya ānaṁd ja jeno ek svabhāv che evo nij ātmā svadehamāṁ rahelo hovā chatāṁ
paṇ he yogī! tene tuṁ kem jāṇato nathī?
ahīṁ te ja ātmā upādey che evo bhāvārtha che. 27.
tyār pachī pāṁc prakṣepakone kahe che. te ā pramāṇe :
bhāvārtha :je śuddhātmasvarūpamāṁ anākuḷatā jenuṁ lakṣaṇ che evā pāramārthik sukhathī
adhikār-1 : dohā-28 ]paramātmaprakāś: [ 55
(झगड़ों) को तो जानता है; अपने स्वरूपकी तरफ क्यों नहीं देखता ? वह निज स्वरूप ही
उपादेय है, अन्य कोई नहीं है
।।२७।।
इससे आगे पाँच प्रक्षेपकों द्वारा आत्मा ही का कथन करते हैं
गाथा२८
अन्वयार्थ :[यत्र ] जिस शुद्ध आत्मस्वभावमें [इन्द्रियसुखदुःखानि ] आकुलता
रहित अतीन्द्रियसुखसे विपरीत जो आकुलताके उत्पन्न करनेवाले इन्द्रियजनित सुख दुःख [न ]
नहीं हैं, [यत्र ] जिसमें [मनोव्यापारः ] संकल्प-विकल्परूप मनका व्यापार भी [न ] नहीं है,
अर्थात् विकल्प रहित परमात्मासे व्यापार जुदे हैं, [तं ] उस पूर्वोक्त लक्षणावालेको [हे जीव
त्वं ] हे जीव, तू [आत्मानं ] आत्माराम [मन्यस्व ] मान, [अन्यत्परम् ] अन्य सब विभावोंको
[अपहर ] छोड़
भावार्थ :ज्ञानानन्दस्वरूप निज शुद्धात्माको निर्विकल्पसमाधिमें स्थिर होकर जान,