Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-66 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
adhikAr-1 : dohA-66 ]paramAtmaprakAsh: [ 117
होकर न घूमा हो, अर्थात् जिन वचनकी प्रतीति न करनेसे सब जगह और सब योनियोंमें भ्रमण
किया, जन्म-मरण किये
यहाँ यह तात्पर्य है, कि जिन-वचनके न पानेसे यह जीव जगत्में
भ्रमा, इसलिये जिन-वचन ही आराधने योग्य है ।।६५।।
आगे आत्मा पङ्गु (लंगड़े) की तरह आप न तो कहीं जाता है, और न आता है, कर्म
ही इसको ले जाते है, और ले आते हैं, ऐसा कहते हैं
गाथा६६
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, [आत्मा ] यह आत्मा [पङ्गोः अनुहरति ] पंगुके
समान है, [आत्मा ] आप [न याति ] न कहीं जाता है, [न आयाति ] न आता है [भुवनत्रयस्य
अपि मध्ये ] तीनों लोकमें इस जीवको [विधिः ] कर्म ही [नयति ] ले जाता है, [विधिः ]
कर्म ही [आनयति ] ले आता है
upajIne-bhedAbhedaratnatrayanA pratipAdak jinavachanane nahi prApta karato A jIv anAdikALathI na
bhamyo hoy.
ahI.n, bhedAbhedaratnatrayanA pratipAdak je jinavachanane nahi prApta karato jIv bhaTakyo. te
jinavachan upAdeyabhUt Atmasukhanu.n pratipAdak hovAthI upAdey Che, evo tAtparyArtha Che. 651.
have, AtmA pA.ngaLA mANasanI jem svaya.n jato nathI ke Avato nathI, karma ja tene lAve
Che, laI jAy Che em kahe Che :
पादकं जिनवचनमलभमानः सन्नयं जीवोऽनादिकाले यत्र चतुरशीतियोनिलक्षेषु मध्ये भूत्वा न
भ्रमितः सोऽत्र कोऽपि प्रदेशो नास्ति इति
अत्र यदेव भेदाभेदरत्नत्रयप्रतिपादकं
जिनवचनमलभमानो भ्रमितो जीवस्तदेवोपादेयात्मसुखप्रतिपादकत्वादुपादेयमिति
तात्पर्यार्थः
।।६५।।
अथात्मा पङ्गुवत् स्वयं न याति न चैति कर्मैव नयत्यानयति चेति कथयति
६६) अप्पा पंगुह अणुहरइ अप्पु ण जाइ ण एइ
भुवणत्तयहँ वि मज्झि जिय विहि आणइ विहि णेइ ।।६६।।
आत्मा पङ्गोः अनुहरति आत्मा न याति न आयाति
भुवनत्रयस्य अपि मध्ये जीव विधिः आनयति विधिः नयति ।।६६।।
अप्पा पंगुह अणुहरइ अप्पु ण जाइ ण एइ आत्मा पङ्गोरनुहरति सद्रशो भवति