Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-75 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
344 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-75
मथितेन करु करो हस्तः चोप्पडउ ण होइ चिक्कनः स्निग्धो न भवतीति अत्र यथा
बहुतरमपि सलिले मथितेऽपि हस्तः स्निग्धो न भवति, तथा वीतरागशुद्धात्मानुभूतिलक्षणेन
ज्ञानेन विना बहुनापि तपसा मोक्षो न भवतीति तात्पर्यम्
।।७४।।
अथ निश्चयनयेन यन्निजात्मबोधज्ञानबाह्यं ज्ञानं तेन प्रयोजनं नास्तीत्यभिप्रायं मनसि
संप्रधार्य सूत्रमिदं प्रतिपादयति
२०२) जं णिय-बोहहँ बाहिरउ णाणु वि कज्जु ण तेण
दुक्खहँ कारणु जेण तउ जीवहँ होइ खणेण ।।७५।।
यत् निजबोधाद्बाह्यं ज्ञानमपि कार्यं न तेन
दुःखस्य कारणं येन तपः जीवस्य भवति क्षणेन ।।७५।।
जं इत्यादि जं यत् णिय-बोहहं बाहिरउ दानपूजातपश्चरणादिकं कृत्वापि
vItarAg shuddha AtmAnI anubhUtirUp j~nAn vinA bahu tap karavAthI paN mokSha thato nathI. e
tAtparya Che. 74.
have, nishchayanayathI je AtmabodharUp j~nAnathI bAhya (rahit) j~nAn Che tenAthI kA.nI paN
prayojan nathI, evo abhiprAy manamA.n rAkhIne A sUtra kahe Che :
bhAvArtha:dAn, pUjA, tapashcharaNAdik karIne paN dekhelA, sA.nbhaLelA ane anubhavelA
महान् तप करो, तो भी मोक्ष नहीं होता क्योंकि सम्यग्ज्ञानका लक्षण वीतराग शुद्धात्माकी
अनुभूति है, वही मोक्षका मूल है वह सम्यग्ज्ञान-सम्यग्दर्शनादिसे भिन्न नहीं है, तीनों एक
हैं ।।७४।।
आगे निश्चयकर आत्मज्ञानसे बहिर्मुख बाह्य पदार्थोंका ज्ञान है, उससे प्रयोजन नहीं
सधता, ऐसा अभिप्राय मनमें रखकर कहते हैं
गाथा७५
अन्वयार्थ :[यत् ] जो [निजबोधात् ] आत्मज्ञानसे [बाह्यं ] बाहर (रहित)
[ज्ञानमपि ] शास्त्र वगैरका ज्ञान भी है, [तेन ] उस ज्ञानसे [कार्यं न ] कुछ काम नहीं, [येन ]
क्योंकि [तपः ] वीतरागस्वसंवेदनज्ञान रहित तप [क्षणेन ] शीघ्र ही [जीवस्य ] जीवको
[दुःखस्य कारणं ] दुःखका कारण [भवति ] होता है
भावार्थ :निदानबंध आदि तीन शल्योंको आदि ले समस्त विषयाभिलाषरूप