Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-77 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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adhikAr-2 : dohA-77 ]paramAtmaprakAsh: [ 347
पुरतो हे जीव किं विलसइ किं विलसति किं शोभते अपि तु नैव कोऽसौ तम-राउ तमो
रागस्तमोव्याप्तरिति अत्रेदं तात्पर्यम् यस्मिन् शास्त्राभ्यासज्ञाने जातेऽप्यनाकुलत्वलक्षण-
पारमार्थिकसुखप्रतिपक्षभूता आकुलत्वोत्पादका रागादयो वृद्धिं गच्छन्ति तन्निश्चयेन ज्ञानं न
भवति कस्मात् विशिष्टमोक्षफ लाभावादिति ।।७६।।
अथ ज्ञानिनां निजशुद्धात्मस्वरूपं विहाय नान्यत्किमप्युपादेयमिति दर्शयति
२०४) अप्पा मिल्लिवि णाणियहँ अण्णु ण सुंदरु वत्थु
तेण ण विसयहँ मणु रमइ जाणंतहँ परमत्थु ।।७७।।
आत्मानं मुक्त्वा ज्ञानिनां अन्यन्न सुन्दरं वस्तु
तेन न विषयेषु मनो रमते जानतां परमार्थम् ।।७७।।
ahI.n, e tAtparya Che ke shAstranA abhyAsathI j~nAn thavA ChatA.n paN jemA.n anAkuLatA jenu.n
lakShaN Che evA pAramArthik sukhathI pratipakShabhUt AkuLatAnA utpAdak evA rAgAdi vR^iddhi pAme
Che (rAgAdinI vR^iddhi thAy Che) te kharekhar j~nAn ja nathI. kAraN ke tenA vaDe vishiShTa mokShaphaLanI
prApti thatI nathI. 76.
have, j~nAnI puruShone nijashuddhAtmasvarUp sivAy bIju.n kA.nI paN upAdey nathI, em darshAve
Che :
अभिलाषा [इच्छा ] नहीं शोभती यह निश्चयसे जानना शास्त्रका ज्ञान होने पर भी जो
निराकुलता न हो, और आकुलताके उपजानेवाले आत्मीकसुखके वैरी रागादिक जो वृद्धिको
प्राप्त हों, तो वह ज्ञान किस कामका ? ज्ञान तो वह है, जिससे आकुलता मिट जावे इससे
यह निश्चय हुआ, कि बाह्य पदार्थोंका ज्ञान मोक्षफ लके अभावसे कार्यकारी नहीं है ।।७६।।
आगे ज्ञानी जीवोंके निज शुद्धात्मभावके बिना अन्य कुछ भी आदरने योग्य नहीं है,
ऐसा दिखलाते हैं
गाथा७७
अन्वयार्थ :[आत्मानं ] आत्माको [मुक्त्वा ] छोड़कर [ज्ञानिनां ] ज्ञानियोंको
[अन्यद् वस्तु ] अन्य वस्तु [ सुंदरं न ] अच्छी नहीं लगती, [तेन ] इसलिये [परमार्थम्
जानतां ] परमात्म
- पदार्थको जाननेवालोंका [मनः ] मन [विषयाणां ] विषयोंमें [न रमते ] नहीं
लगता