Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-97 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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378 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-97
कुर्वन्ति केवल-णाणिं वीतरागसदानन्दैकसुखाविनाभूतकेवलज्ञानेन वीतरागस्वसंवेदन णाणि
ज्ञानिनः फु डु स्फु टं निश्चितं सयलु वि समस्तमपि जीवराशिं एक्कु मुणंति संग्रहनयेन समुदायं
प्रत्येकं मन्यन्त इति अभिप्रायः
।।९६।।
अथ केवलज्ञानादिलक्षणेन शुद्धसंग्रहनयेन सर्वे जीवाः समाना इति कथयति
२२४) जीवा सयल वि णाण-मय जम्मण-मरण-विमुक्क
जीव-पएसहिँ सयल सम सयल वि सगुणहिँ एक्क ।।९७।।
जीवाः सकला अपि ज्ञानमया जन्ममरणविमुक्त ाः
जीवप्रदेशैः सकलाः समाः सकला अपि स्वगुणैरेके ।।९७।।
जीवा इत्यादि जीवा सयल वि णाण-मय व्यवहारेण लोकालोकप्रकाशकं निश्चयेन
स्वशुद्धात्मग्राहकं यत्केवलज्ञानं तज्ज्ञानं यद्यपि व्यवहारेण केवलज्ञानावरणेन झंपितं तिष्ठति
svasa.nvedanavALA j~nAnIo ek (kevaL) vItarAg sadAna.ndarUp sukhanI sAthe avinAbhAvI
kevaLaj~nAnathI nishchayathI samasta jIvarAshine sa.ngrahanayathI samudAyarUp ek mAne Che. 96.
have, shuddhasa.ngrahanayathI kevaLaj~nAnAdi lakShaNathI sarva jIvo samAn Che, em kahe Che :
bhAvArtha :‘जीवा सयल वि णाणमय’ vyavahAranayathI lokAlok prakAshak ane
nishchayanayathI svashuddhAtmanu.n grAhak je kevaLaj~nAn Che te j~nAn joke vyavahAranayathI kevaL-
मानते हैं, और वीतराग स्वसंवेदनज्ञानी जीवपनेसे सब जीवोंको समान मानता है सभी जीव
केवलज्ञानवेलिके कंद सुखपंक्ति है, कोई कम बढ़ नहीं है ।।९६।।
आगे केवलज्ञानादि लक्षणसे शुद्धसंग्रहनयकर सब जीव एक हैं, ऐसा कहते हैं
गाथा९७
अन्वयार्थ :[सकला अपि ] सभी [जीवाः ] जीव [ज्ञानमयाः ] ज्ञानमयी हैं, और
[जन्ममरणविमुक्ताः ] जन्म-मरण सहित [जीवप्रदेशैः ] अपने अपने प्रदेशोंसे [सकलाः
समाः ] सब समान हैं, [अपि ] और [सकलाः ] सब जीव [स्वगुणैः एके ] अपने
केवलज्ञानादि गुणोंसे समान हैं
भावार्थ :व्यवहारसे लोक-अलोकका प्रकाशक और निश्चयनयसे निज
शुद्धात्मद्रव्यका ग्रहण करनेवाला जो केवलज्ञान वह यद्यपि व्यवहारनयसे केवलज्ञानावरणकर्मसे
1. pAThAntar :वीतरागस्वसंवेदेन णाणि ज्ञानिनः = णाणि वीतरागस्वसंवेदनज्ञानिनः