Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
394 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-107
एक्कु करे इत्यादि पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते । एक्कु करे सेनावनादि-
वज्जीवजात्यपेक्षया सर्वमेकं कुरु । मण बिण्णि करि मा द्वौ कार्षीः । मं करि वण्ण-विसेसु
मनुष्यजात्यपेक्षया ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्रादि वर्णभेदं मा कार्षीः, यतः कारणात् इक्कइं देवइं
एकेन देवेन अभेदनयापेक्षया शुद्धैकजीवद्रव्येण जे येन कारणेन वसह वसति । किं कर्तृं ।
तिहुयणु त्रिभुवनं त्रिभुवनस्थो जीवराशिःएहु एषः प्रत्यक्षीभूतः । कतिसंख्योपेतः । असेसु अशेषं
समस्तं इति । त्रिभुवनग्रहणेन इह त्रिभुवनस्थो जीवराशिर्गृह्यते इति तात्पर्यम् । तथाहि ।
लोकस्तावदयं सूक्ष्मजीवैर्निरन्तरं भृतस्तिष्ठति । बादरैश्चाधारवशेन क्वचित् क्वचिदेव त्रसैः
bhAvArtha: — pratham to A lok sUkShma jIvothI nira.ntar (badhI jagAe) bharyo paDyo
Che. (sUkShma pR^ithvIkAy, sUkShma jaLakAy, sUkShma agnikAy, sUkShma vAyukAy, sUkShma nityanigod,
sUkShma itaranigodi — A Cha prakAranA sUkShma jIvothI samasta lok nira.ntar bharelo rahe Che)
ane te AdhAravashe (rahelA) bAdar jIvothI lokamA.n kyA.nk, kyA.nk bharelo Che, tras jIvothI
paN kyA.nk, kyA.nk bharelo Che. (bAdar pR^ithvIkAy, bAdar jaLakAy, bAdar agnikAy, bAdar
vAyukAy, bAdar nityanigod, bAdar itaranigod ane pratyek vanaspati jyA.n AdhAr Che tyA.n
Che, tethI kyA.nk hoy Che kyA.nk nathI hotA ChatA.n te ghaNA sthaLomA.n Che. A rIte sthAvar
jIvo to traN lokamA.n Che, ane dvIndriy, trIndriy, chaturindriy, pa.nchendriy, tirya.nch, e
madhyalokamA.n ja Che, adholok ane UrdhvalokamA.n nathI. temA.nthI dvIndriy, trIndriy, chaturindriy
jIv karmabhUmimA.n ja Che, bhogabhUmimA.n nathI. temA.nthI bhogabhUmimA.n garbhaj pa.nchendriy sa.nj~nI
[मा द्वौ कार्षीः ] इसलिये राग और द्वेष मत कर, [वर्णविशेषम् ] मनुष्य जातिकी अपेक्षा
ब्राह्मणादि वर्ण - भेदको भी [मा कार्षीः ] मत कर, [येन ] क्योंकि [एकेन देवेन ] अभेदनयसे
शुद्ध आत्माके समान [एतद् अशेषम् ] ये सब [त्रिभुवनं ] तीनलोकमें रहनेवाली जीव - राशि
[वसति ] ठहरी हुई है, अर्थात् जीवपनेसे सब एक हैं ।
भावार्थ : — सब जीवोंकी एक जाति है । जैसे सेना और वन एक है, वैसे जातिकी
अपेक्षा सब जीव एक हैं । नर-नारकादि भेद और ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्रादि वर्ण - भेद सब
कर्मजनित हैं, अभेदनयसे सब ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्रादि वर्ण – भेद सब कर्मजनित हैं,
अभेदनयसे सब जीवोंको एक जानो । अनंत जीवोंकर वह लोक भरा हुआ है । उस जीव
– राशिमें भेद ऐसे हैं — जो पृथ्वीकायसूक्ष्म, जलकायसूक्ष्म, अग्निकायसूक्ष्म, वायुकायसूक्ष्म,
नित्यनिगोदसूक्ष्म, इतरनिगोदसूक्ष्म — इन छह तरहके सूक्ष्म जीवोंकर तो यह लोक निरन्तर भरा
हुआ है, सब जगह इस लोकमें सूक्ष्म जीव हैं । और पृथ्वीकायबादर, जलकायबादर,
अग्निकायबादर, वायुकायबादर, नित्यनिगोदबादर, इतरनिगोदबादर और प्रत्येकवनस्पति — ये