Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-108 (Adhikar 2) Pardravyana Sambadhano Tyag.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
adhikAr-2 : dohA-108 ]paramAtmaprakAsh: [ 397
जीवाः समाना भवन्तीति व्याख्यानमुख्यतया त्रयोदशसूत्रैरन्तरस्थलं गतम् एवं
मोक्षमोक्षफ लमोक्षमार्गादिप्रतिपादकद्वितीयमहाधिकारमध्ये चतुर्भिरन्तरस्थलैः शुद्धोपयोगवीतराग-
स्वसंवेदनज्ञानपरिग्रहत्यागसर्वजीवसमानताप्रतिपादनमुख्यत्वेनैकचत्वारिंशत्सूत्रैर्महास्थलं समाप्तम्
अत ऊर्ध्वं ‘परु जाणंतु वि’ इत्यादि सप्ताधिकशतसूत्रपर्यन्ते स्थलसंख्याबहिर्भूतान्
प्रक्षेपकान् विहाय चूलिकाव्याख्यानं करोति इति
२३५) परु जाणंतु वि परममुणि परसंसग्गु चयंति
परसंगइँ परमप्पयहँ लक्खहँ जेण चलंति ।।१०८।।
परं जानन्तोऽपि परममुनयः परसंसर्गं त्यजन्ति
परसंगेन परमात्मनः लक्ष्यस्य येन चलन्ति ।।१०८।।
A pramANe soLavalA suvarNanA draShTA.nt vaDe kevaLaj~nAnAdi lakShaNathI sarva jIvo samAn Che
evA vyAkhyAnanI mukhyatAthI ter dohAsUtronu.n a.ntarasthaL samApta thayu.n.
e pramANe mokShamArga, mokShaphaL, ane mokSha AdinA pratipAdak bIjA mahAdhikAramA.n
chAr antarasthaLothI shuddhopayog, vItarAg svasa.nvedanarUpaj~nAn, parigrahatyAg ane sarva jIvonI
samAnatAnA pratipAdananI mukhyatAthI ekatAlIs sUtronu.n mahAsthaL samApta thayu.n.
AnA paChI ‘परू जाणंतु वि’ ityAdi ekaso sAt gAthAsUtrothI, sthaLasa.nkhyAthI bahirbhUt
prakShepakone ChoDIne chUlikAnu.n vyAkhyAn kare Che, te A pramANe :
इसप्रकार सोलहवानीके सोनेके दृष्टान्त द्वारा केवलज्ञानादि लक्षणसे सब जीव समान
हैं, इस व्याख्यानकी मुख्यतासे तेरह दोहासूत्र कहे इस तरह मोक्षमार्ग, मोक्षफ ल और मोक्ष
इन तीनोंको कहनेवाले दूसरे महाधिकारमें चार अन्तरस्थलोंका इकतालीस दोहोंका महास्थल
समाप्त हुआ
इसमें शुद्धोपयोग, वीतरागस्वसंवेदनज्ञान, परिग्रहत्याग और सब जीव समान हैं,
ये कथन किया
आगे ‘पर जाणंतु वि’ इत्यादि एकसौ सात दोहा पर्यंत तीसरा महाधिकार कहते हैं,
उसीमें ग्रंथको समाप्त करते हैं
गाथा१०८
अन्वयार्थ :[परममुनयः ] परममुनि [परं जानंतोऽपि ] उत्कृष्ट आत्मद्रव्यको
जानते हुए भी [परसंसर्गं ] परद्रव्य जो द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म उसके सम्बन्धको