Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-135 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
440 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-135
jo anurAg jinadharmamA.n kare to jIv sa.nsAramA.n na paDe. vaLI, kahyu.n Che ke ‘‘विसयहं
कारणि सव्वु जणु जिम अणराउ करेइ तिम जिणभासिए धम्मि जइ ण उ संसारि पडेइ ।।,
(artha:viShayonA kAraNomA.n sarva jano jevo anurAg kare Che tevo anurAg jin-bhAShit
dharmamA.n kare to te jano sa.nsAramA.n paDe nahi. 134.
have, jeNe chittanI shuddhi karIne tapashcharaN na karyu.n teNe potAnA AtmAne Chetaryo
evo abhiprAy manamA.n dhArIne (lakShamA.n rAkhIne) A sUtra kahe Che :
bhAvArtha:para.nparAe durlabh evo manuShyabhav ane tapashcharaN paN prApta thatA.n nirvikalpa
भावार्थः विषयसुखनिमित्तं यथानुरागं करोति जीवस्तथा यदि जिनधर्मं करोति तर्हि संसारे
न पततीति तथा चोक्त म्‘‘विसयहं कारणि सव्वु जणु जिम अणुराउ करेइ तिम
जिणभासिए धम्मि जइ ण उ संसारि पडेइ ।।’’ ।।१३४।।
अथ येन चित्तशुद्धिं कृत्वा तपश्चरणं न कृतं तेनात्मा वञ्चित इत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा
सूत्रमिदं प्रतिपादयति
२६५) जेण ण चिण्णउ तव-यरणु णिम्मलु चित्तु करेवि
अप्पा वंचिउ तेण पर माणुस-जम्मु लहेवि ।।१३५।।
येन न चीर्णं तपश्चरणं निर्मलं चित्तं कृत्वा
आत्मा वञ्चितः तेन परं मनुष्यजन्म लब्ध्वा ।।१३५।।
जेण इत्यादि जेण येन जीवेन ण चिण्णउ न चीर्णं न चरितं न कृतम्
जगह भी कहा है, कि जैसे विषयोंके कारणोंमें यह जीव बारम्बार प्रेम करता है, वैसे जो
जिनधर्ममें करे, तो संसारमें भ्रमण न करे
।।१३४।।
आगे जिसने चित्तकी शुद्धता करके तपश्चरण नहीं किया, उसने अपना आत्मा ठग
लिया, यह अभिप्राय मनमें रखकर व्याख्यान करते हैं
गाथा१३५
अन्वयार्थ :[येन ] जिस जीवने [तपश्चरणं ] बाह्याभ्यन्तर तप [न चीर्णं ] नहीं
किया, [निर्मलं चित्तं ] महा निर्मल चित्त [कृत्वा ] करके [तेन ] उसने [मनुष्यजन्म ]
मनुष्यजन्मको [लब्ध्वा ] पाकर [परं ] केवल [आत्मा वंचितः ] अपना आत्मा ठग लिया
भावार्थ :महान् दुर्लभ इस मनुष्यदेहको पाकर जिसने विषयकषाय सेवन किये