Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-137*5 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
444 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-137 5
have, sthaLagaNatarIthI bAhya prakShepakanu.n kathan kare Che :
bhAvArtha:pa.nch parameShThInI bhAvanAthI pratipakShabhUt, pa.nchamagatinA (mokShanA) sukhanI
vinAshak evI pA.nch indriyothI bahirbhUt thaIne (alag rahIne) paramArtha shabdathI vAchya evA
vishuddha darshanaj~nAn svabhAvathI paramAtmAne dhyAvato thako je nijashuddhAtmadravyanA samyakshraddhAn,
samyagj~nAn ane samyaganucharaNarUp nishchayaratnatrayane pALe Che-rakShe Che te yogI
dhyAnI
kahevAy Che.
अथ स्थलसंख्याबाह्यं प्रक्षेपकं कथयति
२६८) सो जोइउ जो जोगवइ दंसणु णाणु चरित्तु
होयवि पंचहँ बाहिरउ झायंतउ परमत्थु ।।१३७।।
स योगी यः पालयति (?) दर्शनं ज्ञानं चारित्रम्
भूत्वा पञ्चभ्यः बाह्यः ध्यायन् परमार्थम् ।।१३७।।
सो इत्यादि सो जोइउ स योगी ध्यानी भण्यते यः किं करोति जो जोगवइ यः कर्ता
प्रतिपालयति रक्षति किम् दंसणु णाणु चरित्तु निजशुद्धात्मद्रव्यसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपं
निश्चयरत्नत्रयम् किं कृत्वा होयवि भूत्वा कथंभूतः बाहिरउ बाह्यः केभ्यः पंचह
पञ्चपरमेष्ठिभावनाप्रतिपक्षभूतेभ्यः पञ्चमगतिसुखविनाशकेभ्यः पञ्चेन्द्रियेभ्यः किं कुर्वाणः
झायंतउ ध्यायन् सन् कम् परमत्थु परमार्थशब्दवाच्यं विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं परमात्मानमिति
आगे स्थलसंख्याके बाह्य जो प्रक्षेपक दोहे हैं, उनको कहते हैं
गाथा१३७
अन्वयार्थ :[स योगी ] वही ध्यानी है, [यः ] जो [पंचभ्यः बाह्यः ] पंचेंद्रियोंसे
बाहर (अलग) [भूत्वा ] होकर [परमार्थम् ] निज परमात्माका [ध्यायन् ] ध्यान करता हुआ
[दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् ] दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूपी रत्नत्रय को [पालयति ] पालता है, रक्षा करता
है
भावार्थ :जिसके परिणाम निज शुद्धात्मद्रव्यका सम्यक्श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप
निश्चयरत्नत्रयमें ही लीन है, जो पंचमगतिरूपी मोक्षके सुखको विनाश करनेवाली और
पांचपरमेष्ठीकी भावनासे रहित ऐसी पंचेंद्रियोंसे जुदा हो गया है, वही योगी है, योग शब्दका
अर्थ ऐसा है, कि अपना मन चेतनमें लगाना वह योग जिसके हो, वही योगी है, वही ध्यानी