Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-149 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
462 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-149
ane nirguN sharIrathI jo sthir, nirmaL ane sArabhUt guNavALI kriyA vadhI shake Che to
te kriyA shA mATe na karavI? (avashya karavI.) arthAt A vinAshI, malin ane nirguN
sharIrane sthir, nirmaL ane guNayukta AtmAnA dhyAnamA.n lagADavu.n joIe. 148.
vaLI, have sharIrane ashuchi darshAvIne mamatva ChoDAve Che :
bhAvArtha:jevI rIte narakagR^ih se.nkaDo ChidravALu.n jarjarit Che tevI rIte sharIrarUpI ghar
paN navadvArarUpI ChidrovALu.n hovAthI shatajIrNa Che (taddan jIrNa Che) ane paramAtmA janma, jarA,
गुणसारं काएण जा विढप्पइ सा किरिया किण्ण कायव्वा ।।’’ ।।१४८।।
अथ
२८०) जेहउ जज्जरु णरय-घरु तेहउ जोइय काउ
णरइ णिरंतरु पूरियउ किम किज्जइ अणुराउ ।।१४९।।
यथा जर्जरं नरकगृहं तथा योगिन् कायः
नरके निरन्तरं पूरितं किं क्रियते अनुरागः ।।१४९।।
जेहउ इत्यादि जेहउ जज्जरु यथा जर्जरं शतजीर्णं णरय-घरु नरकगृहं तेहउ
जोइउ काउ तथा हे योगिन् कायः यतः किम् णरइ णिरंतरु पूरियउ नरके निरन्तरं
है, इसके निमित्तसे सारभूत ज्ञानादि गुण सिद्धि करने योग्य हैं इस शरीरसे तप संयमादिका
साधन होता है, और तप संयमादि क्रियासे सारभूत गुणोंकी सिद्धि होती है जिस क्रियासे ऐसे
गुण सिद्ध हों, वह क्रिया क्यों नहीं करनी, अवश्य करनी चाहिये ।।१४८।।
आगे शरीरको अशुचि दिखलाकर ममत्व छुड़ाते हैं
गाथा१४९
अन्वयार्थ :[योगिन् ] हे योगी, [यथा ] जैसा [जर्जरं ] सैकड़ों छेदोंवाला
[नरकगृहं ] नरकघर है, [तथा ] वैसा यह [कायः ] शरीर [नरके ] मलमूत्रादिसे
[निरंतरं ] हमेशा [पूरितं ] भरा हुआ है ऐसे शरीरसे [अनुरागः ] प्रीति [किं क्रियते ] कैसे
की जावे ? किसी तरह भी यह प्रीतिके योग्य नहीं हैं
भावार्थ :जैसे नरकका घर अति जीर्ण जिसके सैकड़ों छिद्र हैं, वैसे यह कायरूपी
घर साक्षात् नरकका मन्दिर है, नव द्वारोंसे अशुचि वस्तु झरती है और आत्माराम जन्ममरणादि