Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-46 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
स्योपादेयभूतस्यातीन्द्रियसुखस्य साधकत्वादुपादेय इति भावार्थः ।।४५।।
अथ यस्य परमार्थेन बन्धसंसारौ न भवतस्तमात्मानं व्यवहारं मुक्त्वा जानीहि इति
कथयति
४६) जसु परमत्थे बंधु णवि जोइय ण वि संसारु
सो परमप्पउ जाणि तुहुँ मणि मिल्लिवि ववहारु ।।४६।।
यस्य परमार्थेन बन्धो नैव योगिन् नापि संसारः
तं परमात्मानं जानीहि त्वं मनसि मुक्त्वा व्यवहारम् ।।४६।।
जसु परमत्थें बंधु णवि जोइय ण वि संसारु यस्य परमार्थेन बन्धो नैव हे योगिन्
नापि संसारः तद्यथायस्य चिदानन्दैकस्वभावशुद्धात्मनस्तद्विलक्षणो द्रव्यक्षेत्रकाल-
आगे जिसके निश्चयकर बंध नहीं हैं, और संसार भी नहीं है, उस आत्माको सब
लौकिकव्यवहार छोड़कर अच्छी तरह पहचानो, ऐसा कहते हैं
गाथा४६
अन्वयार्थ :[हे योगिन् ] हे योगी, [यस्य ] जिस चिदानन्द शुद्धात्माके
[परमार्थेन ] निश्चय करके [संसारः ] निज स्वभावसे भिन्न द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावरूप
पाँच प्रकार परिवर्तन (भ्रमण) स्वरूप संसार [नैव ] नहीं है, [बन्धोनापि ] और संसारके कारण
जो प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेशरूप चार प्रकारका बंध भी नहीं है
जो बंध केवलज्ञानादि
अनंतचतुष्टयको प्रगटतारूप मोक्ष-पदार्थसे जुदा है, [तं परमात्मनं ] उस परमात्माको [त्वं ]
तू [मनसि व्यवहारम् मुक्त्वा ] मनमेंसे सब लौकिक-व्यवहारको छोड़कर तथा
वीतरागसमाधिमें ठहरकर [जानीहि ] जान, अर्थात् चिन्तवन कर
भावार्थ :शुद्धात्माकी अनुभूतिसे भिन्न जो संसार और संसारका कारण बंध इन
दोनोंसे रहित और आकुलतासे रहित ऐसे लक्षणवाला मोक्षका मूलकारण जो शुद्धात्मा है, वही
hovAthI upAdey Che, evo bhAvArtha Che. 45.
have jene paramArthathI ba.ndh ane sa.nsAr nathI evA AtmAne vyavahAr ChoDIne jAN em
kahe Che :
bhAvArtha :he yogI! jene paramArthathI ba.ndh paN nathI ane sa.nsAr paN nathIchidAna.nd
jeno ek svabhAv Che evA shuddhAtmAthI vilakShaN ane paramAgam prasiddha dravya, kShetra, kAL, bhav,
80 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-1 : dohA-46