Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Kannada transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ಶ್ರೀ ದಿಗಂಬರ ಜೈನ ಸ್ವಾಧ್ಯಾಯಮಂದಿರ ಟ್ರಸ್ಟ, ಸೋನಗಢ - ೩೬೪೨೫೦
जीव लहेसि मरणमपि हे जीव लभस्व भज मा णिय-दंसण-विम्मुहउ मा पुनर्निजदर्शन-
विमुखः सन् पुण्णु वि जीव करेसि पुण्यमपि हे जीव करिष्यसि तथा च स्वकीयनिर्दोषि-
परमात्मानुभूतिरुचिरूपं त्रिगुप्तिगुप्तलक्षणनिश्चयचारित्राविनाभूतं वीतरागसंज्ञं निश्चयसम्यक्त्वं
भण्यते तदभिमुखः सन् हे जीव मरणमपि लभस्व दोषो नास्ति तेन विना पुण्यं मा
कार्षीरिति
अत्र सम्यक्त्वरहिता जीवाः पुण्यसहिता अपि पापजीवा भण्यन्ते सम्यक्त्व-
सहिताः पुनः पूर्वभवान्तरोपार्जितपापफ लं भुञ्जाना अपि पुण्यजीवा भण्यन्ते येन कारणेन,
तेन कारणेन सम्यक्त्वसहितानां मरणमपि भद्रम्
सम्यक्त्वरहितानां च पुण्यमपि भद्रं न
भवति कस्मात् तेन निदानबद्धपुण्येन भवान्तरे भोगान् लब्ध्वा पश्चान्नरकादिकं गच्छन्तीति
ಲಕ್ಷಣವಾಳುಂ ಜೇ ನಿಶ್ಚಯಚಾರಿತ್ರ ತೇನೀ ಸಾಥೇ ಅವಿನಾಭೂತ ವೀತರಾಗ ನಾಮನುಂ ನಿಶ್ಚಯಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ ಕಹೇವಾಯ ಛೇ
ತೇ ನಿಶ್ಚಯಸಮ್ಯಕ್ತ್ವನೀ ಸನ್ಮುಖ ಥತೋ ಹೇ ಜೀವ! ಜೋ ತುಂ ಮರಣ ಪಣ ಪಾಮೇ ತೋ ದೋಷ ನಥೀ ಪಣ ಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ
ವಿನಾನುಂ ಪುಣ್ಯ ನ ಕರ.
ಅಹೀಂ, ಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ ರಹಿತ ಜೀವೋ ಪುಣ್ಯಸಹಿತ ಹೋವಾ ಛತಾಂ ಪಣ, ಪಾಪೀ ಜೀವ ಕಹೇವಾಯ ಛೇ ಅನೇ
ಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ ಸಹಿತ ಜೀವೋ, ಪೂರ್ವಭವಾನ್ತರಮಾಂ ಉಪಾರ್ಜಿತ ಕರೇಲಾ ಪಾಪಫಳನೇ ಭೋಗವತಾ ಛತಾಂ ಪಣ, ಪುಣ್ಯಜೀವೋ
ಕಹೇವಾಯ ಛೇ. ತೇ ಕಾರಣೇ ಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ ಸಹಿತ ಜೀವೋನುಂ ಮರಣ ಪಣ ಭದ್ರ ಛೇ ಅನೇ ಸಮ್ಯಕ್ತ್ವ ರಹಿತ ಜೀವೋನುಂ
ಪುಣ್ಯ ಪಣ ಭದ್ರ ನಥೀ, ಕಾರಣ ಕೇ ನಿದಾನಥೀ ಬಾಂಧೇಲಾ ತೇ ಪುಣ್ಯಥೀ ಜೀವೋ ಭವಾನ್ತರಮಾಂ ಭೋಗೋನೇ ಪಾಮೀನೇ
೩೧೬ ]ಯೋಗೀನ್ದುದೇವವಿರಚಿತ: [ ಅಧಿಕಾರ-೨ : ದೋಹಾ-೫೮
निश्चयचारित्र उससे अविनाभावी (तन्मयी) जो वीतरागनिश्चयसम्यक्त्व उसके सन्मुख
हुआ
हे जीव, जो तू मरण भी पावे, तो; दोष नहीं, और उस सम्यक्त्वके बिना मिथ्यात्व
अवस्थामें पुण्य भी करे तो अच्छा नहीं है जो सम्यक्त्व रहित मिथ्यादृष्टि जीव पुण्य
सहित हैं, तो भी पापी ही कहे हैं तथा जो सम्यक्त्व सहित हैं, वे पहले भवमें उपार्जन
किये हुए पापके फ लसे दुःख-दारिद्र भोगते हैं, तो भी पुण्याधिकारी ही कहे हैं इसलिये
जो सम्यक्त्व सहित हैं, उनका मरना भी अच्छा मरकर ऊ परको जावेंगे और सम्यक्त्व
रहित हैं, उनका पुण्यकर्म भी प्रशंसा योग्य नहीं है वे पुण्यके उदयसे क्षुद्र (नीच) देव
तथा क्षुद्र मनुष्य होके संसारवनमें भटकेंगे यदि पूर्वके पुण्यको यहाँ भोगते हैं, तो तुच्छ
फ ल भोगके नरकनिगोदमें पड़ेंगे इसलिए मिथ्यादृष्टियोंका पुण्य भी भला नहीं है
निदानबंध पुण्यसे भवान्तरमें भोगोंको पाकर पीछे नरकमें जावेंगे सम्यग्दृष्टि प्रथम मिथ्यात्व
अवस्थामें किये हुए पापोंके फ लसे दुःख भोगते हैं, लेकिन अब सम्यक्त्व मिला है,
इसलिये सदा सुखी ही होवेंगे
आयुके अंतमें नरकसे निकलके मनुष्य होकर ऊ र्ध्वगति ही
पावेंगे, और मिथ्यादृष्टि जो पुण्यके उदयसे देव भी हुए हैं, तो भी देवलोकसे आकर एकेंद्री