Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Malayalam transliteration). Gatha-50 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ശ്രീ ദിഗംബര ജൈന സ്വാധ്യായമംദിര ട്രസ്ട, സോനഗഢ - ൩൬൪൨൫൦
परमात्मरूपेण न परिणमतीत्यर्थः सो परमप्पउ भावि तमेवंलक्षणं परमात्मानं भावय
देहरागादिपरिणतिरूपं बहिरात्मानं मुक्त्वा शुद्धात्मपरिणतिभावनारूपेऽन्तरात्मनि स्थित्वा
सर्वप्रकारोपादेयभूतं विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं परमात्मानं भावयेति भावार्थः
।।४९।। एवं
त्रिविधात्मप्रतिपादकप्रथममहाधिकारमध्ये यथा निर्मलो ज्ञानमयो व्यक्ति रूपः शुद्धात्मा सिद्धौ
तिष्ठति, तथाभूतः शुद्धनिश्चयेन शक्ति रूपेण देहेऽपि तिष्ठतीति व्याख्यानमुख्यत्वेन
चतुर्विंशतिसूत्राणि गतानि
।।
अत उर्ध्वं स्वदेहप्रमाणव्याख्यानमुख्यत्वेन षट्सूत्राणि कथयन्ति तद्यथा
५०) कि वि भणंति जिउ सव्वगउ जिउ जडु के वि भणंति
कि वि भणंति जिउ देह-समु सुण्णु वि के वि भणंति ।।५०।।
केऽपि भणन्ति जीवं सर्वगतं जीवं जडं केऽपि भणन्ति
केऽपि भणन्ति जीवं देहसमं शून्यमपि केऽपि भणन्ति ।।५०।।
ज्ञान-दर्शनमयी सब तरह उपादेयरूप (आराधने योग्य) परमात्माको तुम देह रागादि परिणतिरूप
बहिरात्मपनेको छोड़कर शुद्धात्मपरिणतिकी भावनारूप अन्तरात्मामें स्थिर होकर चिन्तवन करो,
उसीका अनुभव करो, ऐसा तात्पर्य हुआ
।।४९।।
ऐसे तीन प्रकार आत्माके कहनेवाले पहले महाधिकारके पाँचवे स्थलमें जैसा निर्मल
ज्ञानमयी प्रगटरूप शुद्धात्मा सिद्धलोकमें विराजमान है, वैसा ही शुद्धनिश्चयनयकर शक्तिरूपसे
देहमें तिष्ठ रहा है, ऐसे कथनकी मुख्यतासे चौबीस दोहा-सूत्र कहे गये
इससे आगे छह दोहा
-सूत्रोंमें आत्मा व्यवहारनयकर अपनी देहके प्रमाण है, यह कह सकते हैं :
गाथा५०
अन्वयार्थ :[केऽपि ] कोई नैयायिक, वेदान्ती और मीमांसक-दर्शनवाले [जीवं ]
ഛേ, ഏവാ പരമാത്മാനേ തും ഭാവ ഏവോ ഭാവാര്ഥ ഛേ. ൪൯.
ഏ പ്രമാണേ ത്രണ പ്രകാരനാ ആത്മാനാ പ്രതിപാദക പ്രഥമ മഹാധികാരമാം, ജേവോ നിര്മള
ജ്ഞാനമയ വ്യക്തിരൂപേ ശുദ്ധ ആത്മാ സിദ്ധമാം ബിരാജേ ഛേ, തേവോ ജ ശുദ്ധ ആത്മാ ശുദ്ധ നിശ്ചയനയഥീ
ശക്തിരൂപേ ദേഹമാം പണ ബിരാജേ ഛേ, ഏവാ വ്യാഖ്യാനനീ മുഖ്യതാഥീ ചോവീസ സൂത്രോ സമാപ്ത ഥയാം.
ത്യാരപഛീ (ആത്മാ) പോതാനാ ദേഹ ജേവഡോ ഛേ ഏവാ കഥനനീ മുഖ്യതാഥീ ഛ സൂത്രോ കഹേ ഛേ.
തേ ആ പ്രമാണേ :
൮൬ ]യോഗീന്ദുദേവവിരചിത: [ അധികാര-൧ : ദോഹാ-൫൦