Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration). Gatha-58 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
भावार्थः धर्माधर्माकाशकालानां स्वभावगुणपर्यायास्ते च यथावसरं कथ्यन्ते
विभावपर्यायास्तूपचारेण यथा घटाकाशमित्यादि अत्र शुद्धगुणपर्यायसहितः शुद्धजीव
एवोपादेय इति भावार्थः ।।५७।।
अथ जीवस्य विशेषेण द्रव्यगुणपर्यायान् कथयति
५८) अप्पा बुज्झहि दव्वु तुहुँ गुण पुणु दंसणु णाणु
पज्जय चउ-गइ-भाव तणु कम्म-विणिम्मिय जाणु ।।५८।।
आत्मानं बुध्यस्व द्रव्यं त्वं गुणौ पुनः दर्शनं ज्ञानम्
पर्यायान् चतुर्गतिभावान् तनुं कर्मविनिर्मितान् जानीहि ।।५४।।
ଵିଭାଵଗୁଣୋ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ଧର୍ମ, ଅଧର୍ମ, ଆକାଶ ଅନେ କାଳଦ୍ରଵ୍ଯନେ ସ୍ଵଭାଵଗୁଣ ଅନେ
ସ୍ଵଭାଵପର୍ଯାଯୋ ଛେ ଅନେ ତେ ଯୋଗ୍ଯ ସମଯେ କହେଵାମାଂ ଆଵଶେ. ଅନେ (ଆକାଶନେ) ଵିଭାଵପର୍ଯାଯୋ
ଉପଚାରଥୀ ଛେ, ଜେମ କେ ଘଟାକାଶ, (ମଠାକାଶ) ଵଗେରେ.
ଅହୀଂ ଶୁଦ୍ଧ ଗୁଣପର୍ଯାଯ ସହିତ ଶୁଦ୍ଧ ଜୀଵ ଜ ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୫୭.
ହଵେ ଜୀଵନା ଦ୍ରଵ୍ଯ, ଗୁଣ, ପର୍ଯାଯନୁଂ ଵିଶେଷପଣେ କଥନ କରେ ଛେ :
व्यंजन-पर्याय है जीव और पुद्गल इन दोनोंमें तो स्वभाव और विभाव दोनों हैं, तथा धर्म,
अधर्म, आकाश, काल, इन चारोंमें अस्तित्वादि स्वभाव-गुण ही हैं, और अर्थपर्याय षट्गुणी
हानि-वृद्धिरूप स्वभाव-पर्याय सभीके हैं
धर्मादिके चार पदार्थोंके विभावगुण-पर्याय नहीं
हैं आकाशके घटाकाश मठाकाश इत्यादिकी जो कहावत है, वह उपचारमात्र है ये
षट्द्रव्योंके गुण-पर्याय कहे गये हैं इन षट् द्रव्योंमें जो शुद्ध गुण, शुद्ध पर्याय सहित जो शुद्ध
जीव द्रव्य है, वही उपादेय हैआराधने योग्य है ।।५७।।
आगे जीवके विशेषपनेकर द्रव्य-गुणपर्याय कहते हैं
गाथा५८
अन्वयार्थ :हे शिष्य, [त्वं ] तू [आत्मानं ] आत्माको तो [द्रव्यं ] द्रव्य [बुध्यस्व ]
जान, [पुनः ] और [दर्शनं ज्ञानम् ] दर्शन ज्ञानको [गुणौ ] गुण जान, [चतुर्गतिभावान् तनुं ]
चार गतियोंके भाव तथा शरीरको [कर्मविनिर्मितान् ] कर्मजनित [पर्यायान् ] विभाव-पर्याय
[जानीहि ] समझ
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫୮ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୧୦୧