Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
କରଵାମାଂ ଆଵ୍ଯୁଂ ଛେ, ଏଵୀ ସମୁଦାଯପାତନିକା ଛେ. (୧) ତ୍ଯାଂ ଆଦିମାଂ ‘‘जे जाया’’ ଇତ୍ଯାଦି
ପଚ୍ଚୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ତ୍ରଣ ପ୍ରକାରନା ଆତ୍ମାନା କଥନନୁଂ ପୀଠିକାଵ୍ଯାଖ୍ଯାନ ଛେ, (୨) ତ୍ଯାରପଛୀ
‘‘जेहउ णिम्मलु’’ ଇତ୍ଯାଦି ଚୋଵୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ସାମାନ୍ଯ ଵିଵରଣ ଛେ, (୩) ତ୍ଯାରପଛୀ ‘‘अप्पा
जोइय सव्वगउ’’ ଇତ୍ଯାଦି ତେତାଲୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ଵିଶେଷ ଵିଵରଣ ଛେ, (୪) ତ୍ଯାରପଛୀ ‘‘अप्पा
संजमु’’ ଇତ୍ଯାଦି ଏକତ୍ରୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ଚୂଲିକା ଵ୍ଯାଖ୍ଯାନ ଛେ. ଏ ରୀତେ (ଅଂତର ଅଧିକାରୋ
ସହିତ) ପ୍ରଥମ ମହାଧିକାର ସମାପ୍ତ ଥଯୋ.
ତ୍ଯାର ପଛୀ ପ୍ରକ୍ଷେପକ ସୂତ୍ରୋନେ ଛୋଡୀନେ ମୋକ୍ଷ, ମୋକ୍ଷଫଳ ଅନେ ମୋକ୍ଷମାର୍ଗନା ସ୍ଵରୂପନା
କଥନନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ ବସୋ ଚୌଦ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ବୀଜୋ ମହାଧିକାର କହେଵାମାଂ ଆଵ୍ଯୋ ଛେ. ଏଵୀ
ସମୁଦାଯପାତନିକା ଛେ. (୧) ତ୍ଯାଂ ଆଦିମାଂ
‘‘सिरि गुरु’’ ଇତ୍ଯାଦି ତ୍ରୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ପୀଠିକା
ଵ୍ଯାଖ୍ଯାନ ଛେ. (୨) ତ୍ଯାରପଛୀ ‘‘जो भत्तउ’’ ଇତ୍ଯାଦି ଛତ୍ରୀସ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ସାମାନ୍ଯ ଵର୍ଣନ ଛେ.
(୩) ତ୍ଯାରପଛୀ ‘‘सुद्धहं संजमु’’ ଇତ୍ଯାଦି ଏକତାଲୀଶ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ଵିଶେଷ ଵର୍ଣନ ଛେ.
(୪) ତ୍ଯାରପଛୀ ପ୍ରକ୍ଷେପକ ସୂତ୍ରୋନେ ଛୋଡୀନେ ଏକସୋ ସାତ ସୂତ୍ରୋ ସୁଧୀ ଅଭେଦରତ୍ନତ୍ରଯନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ
शतसूत्रपर्यन्तं व्याख्यानं क्रियत इति समुदायपातनिका तत्रादौ ‘जे जाया’ इत्यादि
पञ्चविंशतिसूत्रपर्यन्तं त्रिधात्मपीठिकाव्याख्यानम्, अथानन्तरं ‘जेहउ णिम्मलु’ इत्यादि
चतुर्विंशतिसूत्रपर्यन्तं सामान्यविवरणम्, अत ऊर्ध्वं
‘अप्पा जोइय सव्वगउ’ इत्यादि
त्रिचत्वारिंशत्सूत्रपर्यन्तं विशेषविवरणम्, अत ऊर्ध्वं
‘अप्पा संजमु’ इत्याद्येकत्रिंशत्सूत्रपर्यन्तं
चूलिकाव्याख्यानमिति प्रथममहाधिकारः समाप्तः
अथानन्तरं मोक्षमोक्षफ लमोक्षमार्ग-
स्वरूपकथनमुख्यत्वेन प्रक्षेपकान् विहाय चतुर्दशाधिकशतद्वयसूत्रपर्यन्तं द्वितीयमहाधिकारः प्रारभ्यत
इति समुदायपातनिका
तत्रादौ ‘सिरिगुरु’ इत्यादित्रिंशत्सूत्रपर्यन्तं पीठिकाव्याख्यानं, तदनन्तरं
‘जो भत्तउ’ इत्यादिषट्त्रिंशत्सूत्रपर्यन्तं सामान्यविवरणम्, अथानन्तरं ‘सुद्धहं संजमु’
इत्याद्येकचत्वारिंशत्सूत्रपर्यन्तं विशेषविवरणं, तदनन्तरं प्रक्षेपकान् विहाय सप्तोत्तरशत-
ପାତନିକା ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୭
और परमात्माके कथनकी मुख्यताकर क्षेपकोंको छोड़कर एकसौ तेईस दोहे कहे हैं उनमेंसे
‘जे जाया’ इत्यादि पच्चीस दोहा पर्यंन्त तीन प्रकार आत्माके कथनका पीठिका व्याख्यान,
‘जेहउ णिम्मलु’ इत्यादि चौबीस दोहा पर्यन्त सामान्य वर्णन, ‘अप्पा जोइय सव्वगउ]’ इत्यादि
तेतालीस दोहा पर्यन्त विशेष वर्णन और ‘अप्पा संजमु’ इत्यादि इकतीस दोहा पर्यन्त चूलिका
व्याख्यान है
इस तरह अंतर अधिकारों सहित पहला महाधिकार कहा इसके बाद मोक्ष,
मोक्षफ ल और मोक्षमार्गके स्वरूपके कथनकी मुख्यताकर क्षेपकोंके सिवाय दोसौ चौदह दोहा
पर्यंत दूसरा महाधिकार है
उसमें ‘सिरि गुरु’ इत्यादि तीस दोहा पर्यन्त पीठिकाव्याख्यान, ‘जो
भत्तउ’ इत्यादि छत्तीस दोहा पर्यन्त सामान्यवर्णन और ‘सुद्धह संजमु’ इत्यादि इकतालीस दोहा