Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
ପରପଦାର୍ଥମାଂ ତନ୍ମଯ ଥଈନେ ତେମନେ ଜାଣେ ତୋ ପରନା ସୁଖ-ଦୁଃଖନୁଂ ଜ୍ଞାନ ଥତାଂ ପୋତାନେ ସୁଖ-ଦୁଃଖନୋ
ଅନୁଭଵ ଥାଯ ଅନେ ପରକୀଯ ରାଗ-ଦ୍ଵେଷ ଜାଣଵାମାଂ ଆଵତାଂ, ପୋତାନେ ରାଗଦ୍ଵେଷମଯପଣୁଂ ପ୍ରାପ୍ତ ଥାଯ ଏଵୋ
ମହାନ ଦୋଷ ଆଵେ.
ଅହୀଂ ଜେ ନିଶ୍ଚଯଥୀ ସ୍ଵସ୍ଵରୂପମାଂ ଅଵସ୍ଥାନ କହ୍ଯୁଂ ଛେ ତେ ଜ ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ
ଛେ. ୫.
ହଵେ ନିକଲାତ୍ମା (ଅଶରୀରୀ ଏଵା) ସିଦ୍ଧ ପରମେଷ୍ଠୀନେ ନମସ୍କାର କରୀନେ ହାଲ ତେ ସିଦ୍ଧ ସ୍ଵରୂପନା
ଅନେ ତେନୀ ପ୍ରାପ୍ତିନା ଉପାଯନା କହେନାର ସକଲାତ୍ମାନେ (ଶ୍ରୀ ଅରିହଂତ ଭଗଵାନନେ) ହୁଂ ନମସ୍କାର କରୁଂ
ଛୁଂ :
सूक्ष्मपर्यायशुद्धस्वरूपं ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षणम् निश्चय एकीभूतव्यवहाराभावे स्वात्मनि अपि च
सुखदुःखभावाभावयोरेकीकृत्य स्वसंवेद्यस्वरूपे स्वयत्ने तिष्ठन्ति उपचरितासद्भूतव्यवहारे
लोकालोकावलोकनं स्वसंवेद्यं प्रतिभाति, आत्मस्वरूपकैवल्यज्ञानोपशमं यथा पुरुषार्थपदार्थद्रष्टोः
भवति तेषां बाह्यवृत्तिनिमित्तमुत्पत्तिस्थूलसूक्ष्मपरपदार्थव्यवहारात्मानमेव जानन्ति यदि निश्चयेन
तिष्ठन्ति तर्हि परकीयसुखदुःखपरिज्ञाने सुखदुःखानुभवं प्राप्नोति, परकीयरागद्वेषहेतुपरिज्ञाने च
रागद्वेषमयत्वं च प्राप्नोतीति महद्दूषणम्
अत्र यत् निश्चयेन स्वस्वरूपेऽवस्थानं भणितं
तदेवोपादेयमिति भावार्थः ।।।।
अथ निष्कलात्मानं सिद्धपरमेष्ठिनं नत्वेदानीं तस्य सिद्धस्वरूपस्य तत्प्राप्त्युपायस्य च
प्रतिपाद्कं सकलात्मानं नमस्करोमि
୨୦ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫
तन्मयी हो, तो परके सुख-दुःखसे आप सुखी-दुःखी होवे, ऐसा उनमें कदाचित् नहीं है
व्यवहारनयकर स्थूलसूक्ष्म सबको केवलज्ञानकर प्रत्यक्ष निःसंदेह जानते हैं , किसी पदार्थसे
राग-द्वेष नहीं है
यदि रागके हेतुसे किसीको जाने, तो वे राग द्वेषमयी होवें, यह बड़ा दूषण
है, इसलिये यह निश्चय हुआ कि निश्चयनयकर अपने स्वरूपमें निवास करते हैं परमें नहीं,
और अपनी ज्ञायकशक्तिकर सबको प्रत्यक्ष देखते हैं जानते हैं
जो निश्चयकर अपने
स्वरूपमें निवास कहा, इसलिये वह अपना स्वरूप ही आराधने योग्य है, यह भावार्थ
हुआ
।।।।
आगे निरंजन, निराकार, निःशरीर सिद्धपरमेष्ठीको नमस्कार करता हूँ
୧ ପାଠାନ୍ତର :निश्चयन्त=निश्चयन्तस्तिष्ठति