Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
निश्चयनयेन शुद्धात्मस्वरूपे तिष्ठन्तीति कथयति —
५) ते पुणु वंदउँ सिद्ध-गण जे अप्पाणि वसंत ।
लोयालोउ वि सयलु इहु अच्छहिँ विमलु णियंत ।।५।।
तान् पुनर्वन्दे सिद्धगणान् ये आत्मनि वसन्तः ।
लोकालोकमपि सकलं इह तिष्ठन्ति विमलं पश्यन्तः ।।५।।
ते पुणु वंदउं सिद्धगण तान् पुनर्वन्दे सिद्धगणान् । जे अप्पाणि वसंत लोयालोउ वि
सयलु इहु अत्थ (च्छ) हिं विमलु णियंत ये आत्मनि वसन्तो लोकालोकं सततस्वरूपपदार्थं
निश्चयन्त इति । इदानीं विशेषः । तद्यथा — तान् पुनरहं वन्दे सिद्धगणान् सिद्धसमूहान् वन्दे
कर्मक्षयनिमित्तम् । पुनरपि कथंभूतं सिद्धस्वरूपम् । चैतन्यानन्दस्वभावं लोकालोकव्यापि-
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୧୯
रहे हैं, लोकके शिखर ऊ पर विराजते हैं, तो भी शुद्ध निश्चयनयकर अपने स्वरूपमें ही स्थित
हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ ।
गाथा – ५
अन्वयार्थ : — [‘अहं ] मैं [पुन: ] फि र [तान् ] उन [सिद्धगणान् ] सिद्धोंके
समूहको [वन्दे ] वंदता हूँ [ये ] जो [आत्मनि वसन्त: ] निश्चयनयकर अपने स्वरूपमें तिष्ठते
हुए व्यवहारनयकर [सकलं ] समस्त [लोकालोकं ] लोक अलोकको [विमलं ] संशय रहित
[पश्यन्त: ] प्रत्यक्ष देखते हुए [तिष्ठन्ति ] ठहर रहे हैं ।
भावार्थ : — मैं क र्मोंके क्षयके निमित्त फि र उन सिद्धोंको नमस्कार करता हूँ, जो
निश्चयनयकर अपने स्वरूपमें स्थित हैं, और व्यवहारनयकर सब लोकालोकको निःसंदेहपनेसे
प्रत्यक्ष देखते हैं, परंतु पदार्थोंमें तन्मयी नहीं हैं, अपने स्वरूपमें तन्मयी हैं । जो परपदार्थोंमें
୧. ଅହୀଂ ସଂସ୍କୃତଟୀକା ଅଶୁଦ୍ଧ ଛେ ତେଥୀ ହିଂଦୀନା ଆଧାରେ ଭାଵାର୍ଥ ଲଖ୍ଯୋ ଛେ.
ବିରାଜେ ଛେ. ତୋ ପଣ ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ପୋତାନା ଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମସ୍ଵରୂପମାଂ ଜ ସ୍ଥିତ ଛେ ଏମ କହେ
ଛେ : —
୧ଭାଵାର୍ଥ : — ହୁଂ କର୍ମନା କ୍ଷଯ ଅର୍ଥେ ଫରୀନେ ତେ ସିଦ୍ଧୋନେ ନମସ୍କାର କରୁଂ ଛୁଂ କେ ଜେଓ
ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ପୋତାନା ସ୍ଵରୂପମାଂ ସ୍ଥିତ ଛେ ଅନେ ଵ୍ଯଵହାରନଯଥୀ ସର୍ଵ ଲୋକାଲୋକନେ ନିଃସଂଦେହପଣେ ପ୍ରତ୍ଯକ୍ଷ
ଦେଖେ ଛେ ପରଂତୁ ପର ପଦାର୍ଥୋମାଂ ତନ୍ମଯ ନଥୀ, ପୋତାନା ସ୍ଵରୂପମାଂ ତନ୍ମଯ ଛେ. ଜୋ ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ