Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration). Gatha-14 (Adhikar 1) Antratmanu Swaroopa.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସ୍ଵସଂଵେଦନଜ୍ଞାନରୂପେ ପରିଣମତୋ ଅନ୍ତରାତ୍ମା ଛେ, ପରମ ଭାଵକର୍ମ, ଦ୍ରଵ୍ଯକର୍ମ, ନୋକର୍ମରହିତ
-ବ୍ରହ୍ମ-ଶୁଦ୍ଧବୁଦ୍ଧ-ଏକ ସ୍ଵଭାଵୀ ପରମାତ୍ମା ଛେ. ଶୁଦ୍ଧ, ବୁଦ୍ଧ ସ୍ଵଭାଵନୁଂ ସ୍ଵରୂପ କହେଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ.
ଶୁଦ୍ଧ ଅର୍ଥାତ୍ ରାଗାଦିଥୀ ରହିତ, ବୁଦ୍ଧ ଅର୍ଥାତ୍ ଅନଂତଜ୍ଞାନାଦି ଚତୁଷ୍ଟଯ ସହିତ, ଏ ପ୍ରମାଣେ ଶୁଦ୍ଧ,
ବୁଦ୍ଧ, ସ୍ଵଭାଵନୁଂ ସ୍ଵରୂପ ସର୍ଵତ୍ର ଜାଣଵୁଂ. ଏ ରୀତେ ଆତ୍ମା ତ୍ରଣ ପ୍ରକାରେ ଛେ.
ଵୀତରାଗନିର୍ଵିକଲ୍ପସମାଧିଥୀ ଉତ୍ପନ୍ନ, ଏକ (କେଵଳ) ସଦାନଂଦରୂପ, ସୁଖାମୃତ ସ୍ଵଭାଵନେ ନହି
ପ୍ରାପ୍ତ କରତୋ, ଜେ ଦେହନେ ଜ ଆତ୍ମା ମାନେ ଛେ ତେ ମୂଢାତ୍ମା ଛେ.
ଅହୀଂ (ଆ ତ୍ରଣ ପ୍ରକାରନା ଆତ୍ମାମାଂଥୀ) ବହିରାତ୍ମା ହେଯ ଛେ, ତେନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ ଜୋ କେ
ଅନ୍ତରାତ୍ମା ଉପାଦେଯ ଛେ ତୋ ପଣ ସର୍ଵ ପ୍ରକାରେ ଉପାଦେଯଭୂତ ପରମାତ୍ମାନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ ତେ ହେଯ ଛେ. ଏଵୋ
ତାତ୍ପର୍ଯାର୍ଥ ଛେ. ୧୩.
ହଵେ ପରମସମାଧିମାଂ ସ୍ଥିତ ଥଯେଲୋ ଜେ ଦେହଥୀ ଭିନ୍ନ ଜ୍ଞାନମଯ ପରମାତ୍ମାନେ ଜାଣେ ଛେ ତେ
ଅନ୍ତରାତ୍ମା ଛେ ଏମ କହେ ଛେ :
विचक्षणो वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानपरिणतोऽन्तरात्मा, ब्रह्म शुद्धबुद्धैकस्वभावः परमात्मा
शुद्धबुद्धस्वभावलक्षणं कथ्यतेशुद्धो रागादिरहितो बुद्धोऽनन्तज्ञानादिचतुष्टयसहित इति
शुद्धबुद्धस्वभावलक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यम् स च कथंभूतः ब्रह्म परमो भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्म-
रहितः एवमात्मा त्रिविधो भवति देहु जि अप्पा जो मुणइ सो जणु मूढु हवेइ
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिसंजातसदानन्दैकसुखामृतस्वभावमलभमानः सन् देहमेवात्मानं यो मनुते
जानाति स जनो लोको मूढात्मा भवति इति
अत्र बहिरात्मा हेयस्तदपेक्षया
यद्यप्यन्तरात्मोपादेयस्तथापि सर्वप्रकारोपादेयभूतपरमात्मापेक्षया स हेय इति तात्पर्यार्थः ।।१३।।
अथ परमसमाधिस्थितः सन् देहविभिन्नं ज्ञानमयं परमात्मानं योऽसौ जानाति
सोऽन्तरात्मा भवतीति निरूपयति
१४) देह-विभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ
परम-समाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ ।।१४।।
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୧୩ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୩୭
हुए परमानंद सुखामृतको नहीं पाता हुआ मूर्ख है, अज्ञानी है इन तीन प्रकारके आत्माओंमेंसे
बहिरात्मा तो त्याज्य ही हैआदर योग्य नहीं है इसकी अपेक्षा यद्यपि अंतरात्मा अर्थात्
सम्यग्दृष्टि वह उपादेय है, तो भी सब तरहसे उपादेय (ग्रहण करने योग्य) जो परमात्मा उसकी
अपेक्षा वह अंतरात्मा हेय ही है, शुद्ध परमात्मा ही ध्यान करने योग्य है, ऐसा जानना
।।१३।।
आगे परमसमाधिमें स्थित, देहसे भिन्न ज्ञानमयी (उपयोगमयी) आत्माको जो जानता
है, वह अन्तरात्मा है, ऐसा कहते हैं