Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
ଭାଵାର୍ଥ :ହରି, ହର, ହିରଣ୍ଯଗର୍ଭ ଵଗେରେ ସଂକଲ୍ପରୂପ ଚିତ୍ତନେ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ
ନିତ୍ଯାନଂଦ ଜେନୋ ଏକ ସ୍ଵଭାଵ ଛେ ଏଵା ପରମାତ୍ମାରୂପେ ରାଖୀନେ, ପରିଷହ, ଉପସର୍ଗଥୀ ଅକ୍ଷୁଭିତ ରାଖୀନେ
ତ୍ରଣ ଲୋକଥୀ ଵଂଦିତ ଅନେ କେଵଳଜ୍ଞାନାଦି ଵ୍ଯକ୍ତିରୂପ ସିଦ୍ଧପଣାନେ ପ୍ରାପ୍ତ ଜେ ପରମାତ୍ମାନେ ଧ୍ଯାଵେ ଛେ ତେ
ପରମାତ୍ମାନେ ହେ ପ୍ରଭାକରଭଟ୍ଟ! ତୁଂ ପରମାତ୍ମା ଜାଣ ଅର୍ଥାତ୍ ଭାଵ.
ଅହୀଂ କେଵଳଜ୍ଞାନାଦି ଵ୍ଯକ୍ତିରୂପ ମୁକ୍ତିଗତ ପରମାତ୍ମା ଜେଵୋ ରାଗାଦିଥୀ ରହିତ ସ୍ଵଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମା
ସାକ୍ଷାତ୍ ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୧୬.
ସଂକଲ୍ପଵିକଲ୍ପନୁଂ ସ୍ଵରୂପ କହେଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ. ତେ ଆ ପ୍ରମାଣେ :ପୁତ୍ର, ସ୍ତ୍ରୀ, ଆଦି ଚେତନ ଅନେ
(ସୋନୁଂ, ଚାଂଦୀ ଆଦି) ଅଚେତନ ବାହ୍ଯ ଦ୍ରଵ୍ଯୋ ‘ଆ ମାରାଂ ଛେ’ ଏଵା ସ୍ଵରୂପଵାଳୋ (ଏଵା ମମତ୍ଵରୂପ
ପରିଣାମ ତେ) ସଂକଲ୍ପ ଛେ, ‘ହୁଂ ସୁଖୀ, ହୁଂ ଦୁଃଖୀ,’ ଇତ୍ଯାଦି ଚିତ୍ତଗତ ହର୍ଷଵିଷାଦ ଆଦି ପରିଣାମ ତେ
ଵିକଲ୍ପ ଛେ. ଏ ପ୍ରମାଣେ ସଂକଲ୍ପଵିକଲ୍ପନୁଂ ସ୍ଵରୂପ ସର୍ଵତ୍ର ଜାଣଵୁଂ.
तिहुयणवंदिउ सिद्धिगउ हरिहर झायहिं जो जि त्रिभुवनवन्दितं सिद्धिगतं यं
केवलज्ञानादिव्यक्ति रूपं परमात्मानं हरिहरहिरण्यगर्भादयो ध्यायन्ति किं कृत्वा पूर्वम् लक्खु
अलक्खें धरिवि थिरु लक्ष्यं संकल्परूपं चित्तम् अलक्ष्येण वीतरागनिर्विकल्पनित्यानन्दैक-
स्वभावपरमात्मरूपेण धृत्वा कथंभूतम् स्थिरं परीषहोपसर्गैरक्षुभितं मुणि परमप्पउ सो जि
तमित्थंभूतं परमात्मानं हे प्रभाकरभट्ट मन्यस्व जानीहि भावयेत्यर्थः अत्र केवलज्ञानादि-
व्यक्ति रूपमुक्ति गतपरमात्मसद्रशो रागादिरहितः स्वशुद्धात्मा साक्षादुपादेय इति भावार्थः ।।१६।।
संकल्पविकल्पस्वरूपं कथयते तद्यथाबहिर्द्रव्यविषये पुत्रकलत्रादिचेतनाचेतनरूपे ममेदमिति
स्वरूपः संकल्पः, अहं सुखी दुःखीत्यादिचित्तगतो हर्ष- विषादादिपरिणामो विकल्प इति एवं
संक ल्पविकल्पलक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यम्
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୧୬ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୪୧
अपने मनको [अलक्ष्ये ] वीतराग निर्विकल्प नित्यानंद स्वभाव परमात्मामें [स्थिरं धृत्वा ] स्थिर
करके [तमेव ] उसीको हे प्रभाकरभट्ट, तू [परमात्मानं ] परमात्मा [मन्यस्व ] जान कर
चिंतवन कर
भावार्थ :केवलज्ञानादिरूप उस परमात्माके समान रागादि रहित अपने शुद्धात्माको
पहचान, वही साक्षात् उपादेय है, अन्य सब संकल्प विकल्प त्यागने योग्य हैं अब संकल्प
विकल्पका स्वरूप कहते हैं, कि जो बाह्यवस्तु पुत्र, स्त्री, कुटुंब, बांधव, आदि सचेतन पदार्थ,
तथा चांदी, सोना, रत्न, मणिके आभूषण आदि अचेतन पदार्थ हैं, इन सबको अपने समझे, कि
ये मेरे हैं, ऐसे ममत्व परिणामको संकल्प जानना
तथा मैं सुखी, मैं दुःखी, इत्यादि हर्ष-विषादरूप
परिणाम होना वह विकल्प है इस प्रकार संकल्प-विकल्पका स्वरूप जानना चाहिए ।।१६।।