Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
ହଵେ ନିତ୍ଯ, ନିରଂଜନ, ଜ୍ଞାନମଯ, ପରମାନଂଦ ସ୍ଵଭାଵରୂପ ଶାଂତ ଶିଵସ୍ଵରୂପନେ ଦର୍ଶାଵତାଂ କହେ
ଛେ : —
ଭାଵାର୍ଥ : — ଦ୍ରଵ୍ଯାର୍ଥିକନଯଥୀ ଅଵିନଶ୍ଵର, ରାଗାଦିକର୍ମମଳରୂପ ଅଂଜନଥୀ ରହିତ ହୋଵାଥୀ
ନିରଂଜନ, କେଵଳଜ୍ଞାନଥୀ ରଚାଯେଲ ହୋଵାଥୀ ଜ୍ଞାନମଯ, ଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମଭାଵନାଥୀ ଉତ୍ପନ୍ନ ଵୀତରାଗ
ଆନଂଦରୂପେ ପରିଣମେଲା ହୋଵାଥୀ ପରମାନଂଦସ୍ଵଭାଵୀ — ଏଵା ଜେ ଛେ ତେ ଶାଂତ ଅନେ ଶିଵ ଛେ. ହେ
ପ୍ରଭାକରଭଟ୍ଟ! ଜେ ଵୀତରାଗ ହୋଵାଥୀ ଶାଂତ ଛେ ଅନେ ପରମାନଂଦରୂପ ସୁଖମଯ ହୋଵାଥୀ ଶିଵସ୍ଵରୂପ
ଛେ. ତେଵା ଏକ (କେଵଳ) ଶୁଦ୍ଧବୁଦ୍ଧ ସ୍ଵଭାଵନେ ତୁଂ ଜାଣ ଅର୍ଥାତ୍ ଶୁଦ୍ଧବୁଦ୍ଧ ସ୍ଵଭାଵନେ ଜାଣ ଏ
ଅଭିପ୍ରାଯ ଛେ. ୧୭.
अथ नित्यनिरञ्जनज्ञानमयपरमानन्दस्वभावशान्तशिवस्वरूपं दर्शयन्नाह —
१७) णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंद – सहाउ ।
जो एहउ सो संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ।।१७।।
नित्यो निरञ्जनो ज्ञानमयः परमानन्दस्वभावः ।
य ईद्रशः स शान्तः शिवः तस्य मन्यस्व भावम् ।।१७।।
णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंदसहाउ द्रव्यार्थिकनयेन नित्योऽविनश्वरः, रागादिकर्म-
मलरूपाञ्जनरहितत्वान्निरञ्जनः, केवलज्ञानेन निर्वृत्तत्वात् ज्ञानमयः, शुद्धात्मभावनोत्थ-
वीतरागानन्दपरिणतत्वात्परमानन्दस्वभावः जो एहउ सो संतु सिउ य इत्थंभूतः स शान्तः शिवो
भवति हे प्रभाकरभट्ट तासु मुणिज्जहि भाउ तस्य वीतरागत्वात् शान्तस्य परमानन्दसुखमयत्वात्
शिवस्वरूपस्य त्वं जानीहि भावय । कं भावय । शुद्धबुद्धैकस्वभावमित्यभिप्रायः ।।१७।।
୪୨ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୧୭
आगे नित्य निरंजन ज्ञानमयी परमानंदस्वभाव शांत और शिवस्वरूपका वर्णन करते हैं —
गाथा – १७
अन्वयार्थ : — [नित्यः ] द्रव्यार्थिकनयकर अविनाशी [निरञ्जनः ] रागादिक उपाधिसे
रहित अथवा कर्ममलरूपी अंजनसे रहित [ज्ञानमयः ] केवलज्ञानसे परिपूर्ण और
[परमानंदस्वभावः ] शुद्धात्म भावना कर उत्पन्न हुए वीतराग परमानंदकर परिणत है, [यः
ईद्रशः ] जो ऐसा है, [सः ] वही [शान्तः शिवः ] शांतरूप और शिवस्वरूप है, [तस्य ] उसी
परमात्माका [भावं ] शुद्ध बुद्ध स्वभाव [जानीहि ] हे प्रभाकरभट्ट, तू जान अर्थात् ध्यान
कर ।।१७।।