Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
ହଵେ ଫରୀ ତେ ପରମାତ୍ମାନୁଂ କଥନ କରେ ଛେ : —
ଭାଵାର୍ଥ : — ଜେ ଅନଂତ ଜ୍ଞାନାଦି ନିଜସ୍ଵଭାଵନେ ଛୋଡତୋ ନଥୀ ଅନେ କାମକ୍ରୋଧାଦିରୂପ
ପରଭାଵନେ ନିଜସ୍ଵପଣେ ଗ୍ରହଣ କରତୋ ନଥୀ, ତ୍ରଣେ ଜଗତନା, ତ୍ରଣେ କାଳନା ସମସ୍ତ ଵସ୍ତୁସ୍ଵଭାଵନେ ଜାଣେ
ଛେ, ମାତ୍ର ଜାଣେ ଛେ ଏଟଲୁଂ ଜ ନହି ପଣ ଦ୍ରଵ୍ଯାର୍ଥିକନଯଥୀ ନିତ୍ଯ ଜ ଅଥଵା ନିତ୍ଯ ସର୍ଵକାଳନେ ଜ
ନିଯମଥୀ ଜାଣେ ଛେ ତେ ଶିଵ ଛେ ଅନେ ଶାଂତ ଛେ.
ଵଳୀ ଆ ଜ ଜୀଵ ମୁକ୍ତ-ଅଵସ୍ଥାମାଂ ଵ୍ଯକ୍ତିରୂପ ଶାଂତ ଅନେ ଶିଵସଂଜ୍ଞା ପାମେ ଛେ ଅନେ
ସଂସାର-ଅଵସ୍ଥାମାଂ ଶୁଦ୍ଧ ଦ୍ରଵ୍ଯାର୍ଥିକନଯଥୀ ଶକ୍ତିରୂପେ ଶାଂତ ଅନେ ଶିଵସଂଜ୍ଞା ପାମେ ଛେ. କହ୍ଯୁଂ ପଣ ଛେ
पुनश्च किंविशिष्टो भवति —
१८) जो णिय – भाउ ण परिहरइ जो पर – भाउ ण लेइ ।
जाणइ सयलु वि णिच्चु पर सो सिउ संतु हवेइ ।।१८।।
यो निजभावं न परिहरति यः परभावं न लाति ।
जानाति सकलमपि नित्यं परं स शिवः शान्तो भवति ।।१८।।
यः कर्ता निजभावमनन्तज्ञानादिस्वभावं न परिहरति यश्च परभावं
कामक्रोधादिरूपमात्मरूपतया न गृह्नाति । पुनरपि कथंभूतः । जानाति सर्वमपि
जगत्त्रयकालत्रयवर्तिवस्तुस्वभावं न केवलं जानाति द्रव्यार्थिकनयेन नित्य एव अथवा नित्यं
सर्वकालमेव जानाति परं नियमेन । स इत्थंभूतः शिवो भवति शान्तश्च भवतीति । किं च
अयमेव जीवः मुक्त ावस्थायां व्यक्ति रूपेण शान्तः शिवसंज्ञां लभते संसारावस्थायां तु
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୧୮ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୪୩
आगे फि र उसी परमात्माका कथन करते हैं —
गाथा – १८
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [निज भावं ] अनंतज्ञानादिरूप अपने भावोंको [न
परिहरति ] कभी नहीं छोड़ता [यः ] और जो [परभावं ] कामक्रोधादिरूप परभावोंको [न
लाति ] कभी ग्रहण नहीं करता है, [सकलमपि ] तीन लोक तीन कालकी सब चीजोंको
[परं ] केवल [नित्यं ] हमेशा [जानाति ] जानता है, [सः ] वही [शिवः ] शिवस्वरूप तथा
[शांतः ] शांतस्वरूप [भवति ] है ।
भावार्थ : — संसार अवस्थामें शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकर सभी जीव शक्तिरूपसे परमात्मा