Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
वेदैः शास्त्रैरिन्द्रियैः यो जीव मन्तुं न याति
निर्मलध्यानस्य यो विषयः स परमात्मा अनादिः ।।२३।।
वेदशास्त्रेन्द्रियैः कृत्वा योऽसौ मन्तुं ज्ञातुं न याति पुनश्च कथंभूतो यः
मिथ्याविरतिप्रमादकषाययोगाभिधानपञ्चप्रत्ययरहितस्य निर्मलस्य स्वशुद्धात्मसंवित्ति-
संजातनित्यानन्दैकसुखामृतास्वादपरिणतस्य ध्यानस्य विषयः
पुनरपि कथंभूतो यः अनादिः
स परमात्मा भवतीति हे जीव जानीहि तथा चोक्त म्‘‘अन्यथा वेदपाण्डित्यं
शास्त्रपाण्डित्यमन्यथा अन्यथा परमं तत्त्वं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा ।।’’ अत्रार्थभूत एवं
କହ୍ଯୁଂ ପଣ ଛେ କେ :‘‘अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रपाण्डित्यमन्यथा अन्यथा परमं तत्त्वं लोकाः
क्लिश्यन्ति चान्यथा ।।’’
ଅଥର୍ :ଵେଦପାଂଡିତ୍ଯ ଅନ୍ଯ ପ୍ରକାରେ ଛେ, ଶାସ୍ତ୍ରପାଂଡିତ୍ଯ ଅନ୍ଯ ପ୍ରକାରେ ଛେ ଲୋକୋ ଅନ୍ଯ ପ୍ରକାରେ
କଲେଶ (କଷ୍ଟ) କରେ ଛେ ଅନେ ପରମାତ୍ମା କୋଈ ଅନ୍ଯ ପ୍ରକାରେ ଛେ.
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୨୩ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୪୯
गाथा२३
अन्वयार्थ :[वेदैः ] केवलीकी दिव्यवाणीसे [शास्त्रैः ] महामुनियोंके वचनोंसे तथा
[इन्द्रियैः ] इंद्रिय और मनसे भी [यः ] जो शुद्धात्मा [मन्तुं ] जाना [न याति ] नहीं जाता
है, अर्थात् वेद, शास्त्र, ये दोनों शब्द अर्थस्वरूप हैं, आत्मा शब्दातीत है, तथा इन्द्रिय, मन
विकल्परूप हैं, और मूर्तीक पदार्थको जानते हैं, वह आत्मा निर्विकल्प है, अमूर्तीक है, इसलिए
इन तीनोंसे नहीं जान सकते
[यः ] जो आत्मा [निर्मलध्यानस्य ] निर्मल ध्यानके [विषयः ]
गम्य है, [स ] वही [अनादिः ] आदि अंत रहित [परमात्मा ] परमात्मा है
भावार्थ :मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योगइन पाँच तरह आस्रवोंसे रहित
निर्मल निज शुद्धात्माके ज्ञानकर उत्पन्न हुए नित्यानंद सुखामृतका आस्वाद उस स्वरूप परिणत
निर्विकल्प अपने स्वरूपके ध्यानकर स्वरूपकी प्राप्ति है
आत्मा ध्यानगम्य ही है, शास्त्रगम्य
नहीं है, क्योंकि जिनको शास्त्र सुननेसे ध्यानकी सिद्धि हो जाए, वे ही आत्माका अनुभव कर
सकते हैं, जिन्होंने पाया, उन्होंने ध्यानसे ही पाया है, और शास्त्र सुनना तो ध्यानका उपाय है,
ऐसा समझकर अनादि अनंत चिद्रूपमें अपना परिणमन लगाओ
दूसरी जगह भी ‘अन्यथा’
इत्यादि कहा है उसका यह भावार्थ है, कि वेद शास्त्र तो अन्य तरह ही हैं, नय प्रमाणरूप
हैं, तथा ज्ञानकी पंडिताई कुछ और ही है, वह आत्मा निर्विकल्प है, नय प्रमाण निक्षेपसे रहित
है, वह परमतत्त्व तो केवल आनन्दरूप है, और ये लोक अन्य ही मार्गमें लगे हुए हैं, सो वृथा
୧. ଜୁଓ ଯଶସ୍ତିଲକ ୫-୨୫୧. ପାଠାନ୍ତର :एवएवं