Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
विद्यन्ते कानि अनाकुलत्वलक्षणपारमार्थिकसौख्यविपरीतान्याकुलत्वोत्पादकानीन्द्रियसुख-
दुःखानि यत्र च निर्विकल्पपरमात्मनो विलक्षणः संकल्पविकल्परूपो मनोव्यापारो नास्ति
सो अप्पा मुणि जीव तुहुं अण्णु परिं अवहारु तं पूर्वोक्तलक्षणं स्वशुद्धात्मानं मन्यस्व
नित्यानन्दैकरूपं वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा जानीहि हे जीव, त्वम् अन्य-
त्परमात्मस्वभावाद्विपरीतं पञ्चेन्द्रियविषयस्वरूपादिविभावसमूहं परस्मिन् दूरे सर्वप्रकारेणापहर
त्यजेति तात्पर्यार्थः
निर्विकल्पसमाधौ सर्वत्र वीतरागविशेषणं किमर्थं कृततं इति पूर्वपक्षः
परिहारमाह यत एव हेतोः वीतरागस्तत एव निर्विकल्प इति हेतुहेतुमद्भावज्ञापनार्थम्, अथवा
ये सरागिणोऽपि सन्तो वयं निर्विकल्पसमाधिस्था इति वदन्ति तन्निषेधार्थम्, अथवा
ଵିପରୀତ, ଆକୁଳତାନେ ଉତ୍ପନ୍ନ କରନାର, ଇନ୍ଦ୍ରିଯଜନିତ ସୁଖଦୁଃଖ ନଥୀ ଅନେ ଜେ ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମସ୍ଵରୂପମାଂ
ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ପରମାତ୍ମାଥୀ ଵିଲକ୍ଷଣ, ସଂକଲ୍ପଵିକଲ୍ପରୂପ ମନୋଵ୍ଯାପାର ନଥୀ ତେ ନିଜ ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମାନେ ହେ
ଜୀଵ! ତୁଂ ଜାଣ
ନିତ୍ଯାନଂଦ ଜେନୁଂ ଏକ ରୂପ ଛେ ଏଵୀ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧିମାଂ ସ୍ଥିତ ଥଈନେ
ଜାଣ, ପରମାତ୍ମସ୍ଵଭାଵଥୀ ଵିପରୀତ, ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋନା ଵିଷଯସ୍ଵରୂପ ଆଦି ଅନ୍ଯ ଵିଭାଵସମୂହନେ
ଦୂରଥୀ ଜ ସର୍ଵ ପ୍ରକାରେ ଛୋଡ. ଏ ତାତ୍ପଯାର୍ଥ ଛେ.
ପୂର୍ଵପକ୍ଷ :ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧିମାଂ ସର୍ଵତ୍ର ‘ଵୀତରାଗ’ ଵିଶେଷଣ ଶା ମାଟେ ଲଗାଡଵାମାଂ
ଆଵ୍ଯୁଂ ଛେ?
ତେନୁଂ ସମାଧାନ :ଵୀତରାଗ ହୋଵାନା କାରଣେ ଜ ତେ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ଛେ ଏମ କାରଣ ନେ
କାର୍ଯପଣୁଂ ଜଣାଵଵା ମାଟେ (କାରଣ କେ ତେ ଵୀତରାଗ ଛେ ତେଥୀ ଜ ତେ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ଛେ ଏମ ହେତୁ
ହେତୁମାନନୋ ଭାଵ ଜଣାଵଵା ମାଟେ.); ଅଥଵା ପୋତେ ସରାଗୀ ହୋଵା ଛତାଂ ପଣ ଅମେ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ
ସମାଧିମାଂ ରହୀଏ ଛୀଏ ଏମ ଜେଓ କହେ ଛେ ତେମନା ନିଷେଧ ଅର୍ଥେ; ଅଥଵା ଶ୍ଵେତଶଂଖନୀ ଜେମ
ଆ ସ୍ଵରୂପଵିଶେଷଣ ଛେ ଏମ ସମଜଵା ମାଟେ, (ଜେମ ଶଂଖ ଛେ ତେ ଶ୍ଵେତ ଜ ହୋଯ ଛେ ତେମ ଜେ
ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧି ହୋଯ ଛେ ତେ ଵୀତରାଗ ରୂପ ଜ ହୋଯ ଛେ, ଏ ରୀତେ ସ୍ଵରୂପ ପ୍ରଗଟ କରଵା ମାଟେ)
୫୬ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୨୮
अन्य परमात्मस्वभावसे विपरीत पाँच इन्द्रियोंके विषय आदि सब विकार परिणामोंको दूरसे ही
त्याग, उनका सर्वथा ही त्याग कर
यहाँ पर किसी शिष्यने प्रश्न किया कि निर्विकल्पसमाधिमें
सब जगह वीतराग विशेषण क्यों कहा है ? उसका उत्तर कहते हैंजहाँ पर वीतरागता है,
वहीं निर्विकल्पसमाधिपना है, इस रहस्यको समझानेके लिये अथवा जो रागी हुए कहते हैं कि
हम निर्विकल्पसमाधिमें स्थित हैं, उनके निषेधके लिये वीतरागता सहित निर्विकल्पसमाधिका
कथन किया गया है, अथवा सफे द शंखकी तरह स्वरूप प्रगट करनेके लिये कहा गया है,
୧. ଵୀତରାଗପଣୁଂ ହେତୁ ଛେ, ନିର୍ଵିକଲ୍ପପଣୁଂ ହେତୁମାନ (କାର୍ଯ) ଛେ.