Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
हे प्रभाकरभट्ट जीवाजीवावेकौ मा कार्षीः कस्मात् लक्षणभेदेन भेदोऽस्ति तद्यथा
रसादिरहितं शुद्धचैतन्यं जीवलक्षणम् तथा चोक्तं प्राभृते‘‘अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं
चेदणागुणमसद्दं जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।’’ इत्थंभूतशुद्धात्मनो
भिन्नमजीवलक्षणम् तच्च द्विविधम् जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं,
ଭାଵାର୍ଥ :ହେ ପ୍ରଭାକର ଭଟ୍ଟ! ତୁଂ ଜୀଵ ଅନେ ଅଜୀଵନେ ଏକ ନ କର କାରଣ କେ ତେ ବନ୍ନେମାଂ
ଲକ୍ଷଣଭେଦଥୀ ଭେଦ ଛେ. ତେ ଆ ପ୍ରମାଣେ :
ରସାଦି ରହିତ ଶୁଦ୍ଧ ଚୈତନ୍ଯ ତେ ଜୀଵନୁଂ ଲକ୍ଷଣ ଛେ. ପ୍ରାଭୃତମାଂ (ଶ୍ରୀ କୁଂଦକୁଂଦାଚାର୍ଯକୃତ ବଧା
ଶାସ୍ତ୍ରୋମାଂ) କହ୍ଯୁଂ ଛେ କେ :
अरसमरुवमगंधं अव्वत्तं चेदणा गुणमसद्दं
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।
ଅର୍ଥ :ହେ ଭଵ୍ଯ! ତୁଂ ଜୀଵନେ ରସରହିତ, ରୂପରହିତ, ଗଂଧରହିତ, ଅଵ୍ଯକ୍ତ ଅର୍ଥାତ୍
ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋନେ ଗୋଚର ନଥୀ ଏଵୋ, ଚେତନା ଜେନୋ ଗୁଣ ଛେ ଏଵୋ, ଶବ୍ଦରହିତ, କୋଈ ଚିହ୍ନଥୀ ଜେନୁଂ ଗ୍ରହଣ
ନଥୀ ଏଵୋ ଅନେ ଜେନୋ କୋଈ ଆକାର କହେଵାତୋ ନଥୀ ଏଵୋ ଜାଣ.
ଆଵା ଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମାଥୀ ଅଜୀଵନୁଂ ଲକ୍ଷଣ ଭିନ୍ନ ଛେ ଅନେ ତେ ବେ ପ୍ରକାରନୁଂ ଛେ :ଜୀଵ
ସାଥେ ସଂବଂଧଵାଳୁଂ ଅନେ ଜୀଵ ସାଥେ ସଂବଂଧ ଵିନାନୁଂ; ଦେହରାଗାଦିରୂପ ତେ ଜୀଵ ସାଥେ ସଂବଂଧଵାଳୁଂ ଛେ,
ପୁଦ୍ଗଲାଦି ପାଂଚ ଦ୍ରଵ୍ଯରୂପ ତେ ଜୀଵ ସାଥେ ସଂବଂଧ ଵିନାନୁଂ ଛେ କେ ଜେ ଅଜୀଵନୁଂ ଲକ୍ଷଣ ଛେ, କାରଣ
କେ ଜୀଵଥୀ ଅଜୀଵନୁଂ ଲକ୍ଷଣ ଭିନ୍ନ ଛେ, ତେ କାରଣେ ଜେ ପର ଏଵା ରାଗାଦିକ ଛେ ତେନେ ପର ଜାଣୋ-
ଜେ ଭେଦ୍ଯ ଅନେ ଅଭେଦ୍ଯ ଛେ. (ଅର୍ଥାତ୍ ଜେ ଜୀଵ ସାଥେ ସଂବଂଧ ଵିନାନା ଛେ ଅନେ ଜୀଵ ସାଥେ
ସଂବଂଧଵାଳା ଛେ.)
समझ [च ] और [आत्मनः ] आत्माका [आत्मना अभेदः ] अपनेसे अभेद जान [भणामि ]
ऐसा मैं कहता हूँ
भावार्थ :जीव अजीवके लक्षणोंमेंसे जीवका लक्षण शुद्ध चैतन्य है, वह स्पर्श, रस,
गंधरूप शब्दादिकसे रहित है ऐसा ही श्री समयसारमें कहा है‘‘अरसं’’ इत्यादि इसका
सारांश यह है, कि जो आत्मद्रव्य है, वह मिष्ट आदि पाँच प्रकारके रस रहित है, श्वेत आदिक
पाँच तरहके वर्ण रहित है, सुगन्ध, दुर्गंध इन दो तरहके गंध उसमें नहीं हैं, प्रगट (दृष्टिगोचर)
नहीं है, चैतन्यगुण सहित है, शब्दसे रहित है, पुल्लिंग आदि करके ग्रहण नहीं होता, अर्थात्
लिंग रहित है, और उसका आकार नहीं दिखता, अर्थात् निराकार वस्तु है
आकार छह प्रकारके
हैंसमचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सातिक, कुब्जक, वामन, हुंडक इन छह प्रकारके
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୩୦ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୫୯