Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
चरितासद्भूतव्यवहारेणाभेदनयेन स्वपरमात्मनोऽभिन्ने स्वदेहे वसति शुद्धनिश्चयनयेन तु भेदनयेन
स्वदेहाद्भिन्ने स्वात्मनि वसति यः तमात्मानं मन्यस्व जानीहि हे जीव
नित्यानन्दैकवीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा भावयेत्यर्थः । किमन्येन शुद्धात्मनो भिन्नेन
देहरागादिना बहुना । अत्र योऽसौ देहे वसन्नपि निश्चयेन देहरूपो न भवति स एव
स्वशुद्धात्मोपादेय इति तात्पर्यार्थः ।।२९।।
अथ जीवाजीवयोरेकत्वं मा कार्षीर्लक्षणभेदेन भेदोऽस्तीति निरूपयति —
३०) जीवाजीव म एक्कु करि लक्खण भेएँ भेउ ।
जो परु सो परु भणमि मुणि अप्पा अप्पु अभेउ ।।३०।।
जीवाजीवौ मा एकौ कुरु लक्षणभेदेन भेदः ।
यत्परं तत्परं भणामि मन्यस्व आत्मन आत्मना अभेदः ।।३०।।
ଭାଵାର୍ଥ : — ଜେ ଅନୁପଚରିତ ଅସଦ୍ଭୂତ ଵ୍ଯଵହାରନଯଥୀ-ଅଭେଦନଯଥୀ-ସ୍ଵପରମାତ୍ମାଥୀ
ଅଭିନ୍ନ ସ୍ଵଦେହମାଂ ରହେ ଛେ ଅନେ ଶୁଦ୍ଧ ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ-ଭେଦନଯଥୀ ସ୍ଵଦେହଥୀ ଭିନ୍ନ ସ୍ଵାତ୍ମାମାଂ ରହେ ଛେ,
ତେନେ ହେ ଜୀଵ! ତୁଂ ଆତ୍ମା ଜାଣ — ନିତ୍ଯାନଂଦ ଜେନୁଂ ଏକ ରୂପ ଛେ ଏଵୀ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧିମାଂ
ସ୍ଥିତ ଥଈନେ ଭାଵ. ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମାଥୀ ଭିନ୍ନ ଏଵା ଦେହ ରାଗାଦି ଅନେକ ପଦାର୍ଥୋଥୀ ତାରେ ଶୁଂ ପ୍ରଯୋଜନ ଛେ?
ଅହୀଂ ଜେ ଦେହମାଂ ରହେଵା ଛତାଂ ପଣ ନିଶ୍ଚଯଥୀ ଦେହରୂପ ଥତୋ ନଥୀ ତେ ଜ ସ୍ଵଶୁଦ୍ଧାତ୍ମା ଉପାଦେଯ
ଛେ ଏଵୋ ତାତ୍ପର୍ଯାର୍ଥ ଛେ. ୨୯.
ହଵେ ଜୀଵ ଅନେ ଅଜୀଵନୁଂ ଏକତ୍ଵ ନ କର, କାରଣ କେ ଲକ୍ଷଣନା ଭେଦଥୀ ତେ ବନ୍ନେମାଂ ଭେଦ ଛେ
ଏମ କହେ ଛେ : —
୫୮ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୩୦
भावार्थ : — देहमें रहता हुआ भी निश्चयसे देहस्वरूप जो नहीं होता, वही निज
शुद्धात्मा उपादेय है ।।२९।।
आगे जीव ओर अजीवमें लक्षणके भेदसे भेद है, तू दोनोंको एक मत जान, ऐसा कहते
हैं — हे प्रभाकरभट्ट,
गाथा – ३०
अन्वयार्थ : — [जीवाजीवौ ] जीव और अजीवको [एकौ ] एक [मा कार्षीः ] मत
कर क्योंकि इन दोनोंमें [लक्षणभेदेन ] लक्षणके भेदसे [भेदः ] भेद है [यत्परं ] जो परके
सम्बन्धसे उत्पन्न हुए रागादि विभाव (विकार) हैं, [तत्परं ] उनको पर (अन्य) [मन्यस्व ]