Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
भवभावरूपः परमागमप्रसिद्धः पञ्चप्रकारः संसारो नास्ति, इत्थंभूतसंसारस्य कारण-
भूतप्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदभिन्नकेवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयव्यक्ति रूपमोक्षपदार्थाद्विलक्षणो
बन्धोऽपि नास्ति, सो परमप्पउ जाणि तुहुं मणि मिल्लिवि ववहारु तमेवेत्थंभूतलक्षणं परमात्मानं
मनसि व्यवहारं मुक्त्वा जानीहि, वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा भावयेत्यर्थः । अत्र य एव
शुद्धात्मानुभूतिविलक्षणेन संसारेण बन्धनेन च रहितः स एवानाकुलत्वलक्षणसर्व-
प्रकारोपादेयभूतमोक्षसुखसाधकत्वादुपादेय इति तात्पर्यार्थः ।।४६।।
अथ यस्य परमात्मनो ज्ञानं वल्लीवत् ज्ञेयास्तित्वाभावेन निवर्तते न च शक्त्यभावेनेति
कथयति —
४७) णेयाभावे विल्लि जिम थक्कइ णाणु वलेवि ।
मुक्कहँ जसु पय बिंबियउ परम-सहाउ भणेवि ।।४७।।
ज्ञेयाभावे वल्ली यथा तिष्ठति ज्ञानं वलित्वा ।
मुक्त ानां यस्य पदे बिम्बितं परमस्वभावं भणित्वा ।।४७।।
सर्वथा आराधने योग्य है ।।४६।।
आगे जिस परमात्माका ज्ञान सर्वव्यापक है, ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जो ज्ञानसे न
जाना जावे, सब ही पदार्थ ज्ञानमें भासते हैं, ऐसा कहते हैं —
गाथा – ४७
अन्वयार्थ : — [यथा ] जैसे मंडपके अभावसे [वल्लि ] बेल (लता) [तिष्ठति ]
ठहरती है, अर्थात् जहाँ तक मंडप है, वहाँ तक तो चढ़ती है और आगे मंडपका सहारा न
ଅନେ ଭାଵରୂପ ପାଂଚ ପ୍ରକାରନୋ ସଂସାର ଜେନେ ନଥୀ, ତେମଜ ଆ ପ୍ରକାରନା ସଂସାରନା (ପଂଚଵିଧ) କାରଣରୂପ
ପ୍ରକୃତି, ସ୍ଥିତି, ଅନୁଭାଗ, ଅନେ ପ୍ରଦେଶନା ଭେଦଥୀ ଭିନ୍ନ ଏଵା କେଵଳଜ୍ଞାନାଦି ଅନଂତଚତୁଷ୍ଟଯନୀ
ଵ୍ଯକ୍ତିରୂପ ମୋକ୍ଷପଦାର୍ଥଥୀ ଵିଲକ୍ଷଣ ଏଵୋ ବଂଧ ପଣ ଜେନେ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମାନେ ମନମାଂଥୀ ଵ୍ଯଵହାର
ଛୋଡୀନେ ଜାଣ ଅର୍ଥାତ୍ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧିମାଂ ସ୍ଥିତ ଥଈନେ ଭାଵ.
ଅହୀଂ ଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମାନୀ ଅନୁଭୂତିଥୀ ଵିଲକ୍ଷଣ ଏଵା ସଂସାର ଅନେ ବଂଧଥୀ ଜେ ରହିତ ଛେ ତେ
ଜ, ଅନାକୁଳତା ଜେନୁଂ ଲକ୍ଷଣ ଛେ ଏଵା ସର୍ଵ ପ୍ରକାରେ ଉପାଦେଯଭୂତ ମୋକ୍ଷସୁଖନୋ ସାଧକ ହୋଵାଥୀ, ଉପାଦେଯ
ଛେ ଏଵୋ ତାତ୍ପର୍ଯାର୍ଥ ଛେ. ୪୬.
ହଵେ ଵେଲନୀ ଜେମ ତେ ପରମାତ୍ମାନୁଂ ଜ୍ଞାନ (ଅନ୍ଯ) ଜ୍ଞେଯନା ଅସ୍ତିତ୍ଵନା ଅଭାଵଥୀ ଅଟକୀ ଜାଯ
ଛେ, ପଣ ଶକ୍ତିନାଂ ଅଭାଵଥୀ ନହି ଏମ କହେ ଛେ : —
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୭ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୮୧