Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
णेयाभावे विल्लि जिम थक्कइ णाणु वलेवि ज्ञेयाभावे वल्लि यथा तथा ज्ञानं तिष्ठति
व्यावृत्येति यथा मण्डपाद्यभावे वल्ली व्यावृत्य तिष्ठति तथा ज्ञेयावलम्बनाभावे ज्ञानं व्यावृत्य
तिष्ठति न च ज्ञातृत्वशक्त्यभावेनेत्यर्थः कस्य संबन्धि ज्ञानम् मुक्कहं मुक्त ात्मनां ज्ञानम्
कथंभूतम् जसु पय बिंबियउ यस्य भगवतः पदे परमात्मस्वरूपे बिम्बितं प्रतिफ लितं तदाकारेण
परिणतम् कस्मात् परमसहाउ भणेवि परमस्वभाव इति भणित्वा मत्वा ज्ञात्वैवेत्यर्थः अत्र
यस्येत्थंभूतं ज्ञानं सिद्धसुखस्योपादेयस्याविनाभूतं स एव शुद्धात्मोपादेय इति भावार्थः ।।४७।।
मिलनेसे चढ़नेसे ठहर जाती है, उसी तरह [मुक्त ानां ] मुक्त-जीवोंका [ज्ञानं ] ज्ञान भी जहाँतक
ज्ञेय (पदार्थ) हैं, वहाँतक फै ल जाता है, [ज्ञेयाभावे ] और ज्ञेयका अवलम्बन न मिलनेसे
[बलेपि ? ] जाननेकी शक्ति होनेपर भी [तिष्ठति ] ठहर जाता है, अर्थात् कोई पदार्थ जाननेसे
बाकी नहीं रहता, सब द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और सब भावोंको ज्ञान जानता है, ऐसे तीनलोक
सरीखे अनंते लोकालोक होवें, तो भी एकसमयमें ही जान लेवे, [यस्य ] जिस भगवान्
परमात्माके [पदे ] केवलज्ञानमें [परमस्वभावं ] अपना उत्कृष्ट स्वभाव सबके जाननेरूप
[बिम्बितं ] प्रतिभासित हो रहा है, अर्थात् ज्ञान सबका अंतर्यामि है, सर्वाकार ज्ञानकी परिणति
है, ऐसा [भणित्वा ] जानकर ज्ञानका आराधन करो
भावार्थ :जहाँ तक मंडप वहाँ तक ही बेल (लता) की बढ़वारी है, और जब
मंडपका अभाव हो, तब बेल स्थिर होके आगे नहीं फै लती, लेकिन बेलमें विस्तार-शक्तिका
अभाव नहीं कह सकते, इसी तरह सर्वव्यापक ज्ञान केवलीका है, जिसके ज्ञानमें सर्व पदार्थ
झलक ते हैं, वही ज्ञान आत्माका परमस्वभाव है, ऐसा जिसका ज्ञान है, वही शुद्धात्मा उपादेय
है
यह ज्ञानानंदरूप आत्माराम है, वही महामुनियोंके चित्तका विश्राम (ठहरनेकी जगह)
है ।।४७।।
ଭାଵାର୍ଥ :ଜେଵୀ ରୀତେ ଵେଲ ମଂଡପ ଵଗେରେନା ଅଭାଵମାଂ ଆଗଳ ଫେଲାତୀ ଅଟକୀ ଜାଯ ଛେ
ତେଵୀ ରୀତେ ମୁକ୍ତ ଆତ୍ମାଓନୁଂ ଜ୍ଞାନ ଜ୍ଞେଯନା ଅଵଲଂବନନା ଅଭାଵମାଂ ଅଟକୀ ଜାଯ ଛେ, ପଣ
ଜ୍ଞାତୃତ୍ଵଶକ୍ତିନା ଅଭାଵଥୀ ନହି ଏଵୋ ଅର୍ଥ ଛେ. ଜେ ଭଗଵାନନା ପରମାତ୍ମସ୍ଵରୂପମାଂ ଜ୍ଞାନ ବିଂବିତ
ଥଈ ରହ୍ଯୁଂ ଛେ, ତଦାକାରେ ପରିଣମୀ ରହ୍ଯୁଂ ଛେ; ଶା କାରଣେ? ପରମସ୍ଵଭାଵନେ ଜାଣୀନେ ଏ ଅର୍ଥ ଛେ.
ଅହୀଂ ଜେନୁଂ ଆଵୁଂ ଜ୍ଞାନ ଉପାଦେଯଭୂତ ସିଦ୍ଧସୁଖନୀ ସାଥେ ଅଵିନାଭାଵୀ ଛେ ତେ ଜ ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମା
ଉପାଦେଯ ଛେ, ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୪୭.
୧. ଆ ଗାଥାନୀ ସଂସ୍କୃତ ଟୀକାନୋ ଅର୍ଥ ନହି ସମଜାତୋ ହୋଵାଥୀ ଅନ୍ଵଯାର୍ଥ ହିଂଦୀନା ଆଧାରେ କର୍ଯୋ ଛେ.
୮୨ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୭