Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
सुखदुःखादिकं निजनिजकार्यं जनयन्ति तथापि शुद्धनिश्चयनयेन अनन्तज्ञानादिस्वरूपं न हृतं न
विनाशितं न चाभिनवं जनितमुत्पादितं किमपि यस्यात्मनस्तं परमात्मानं वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ
स्थित्वा भावयेत्यर्थः । अत्र यदेव कर्मभिर्न हृतं न चोत्पादितं चिदानन्दैकस्वरूपं तदेवोपादेयमिति
तात्पर्यार्थः ।।४८।।
अथ यः कर्मनिबद्धोऽपि कर्मरूपो न भवति कर्मापि तद्रूपं न संभवति तं परमात्मानं
भावयेति कथयति —
४९) कम्म-णिबद्धु वि होइ णवि जो फु डु कम्मु कया वि ।
कम्मु वि जो ण कया वि फु डु सो परमप्पउ भावि ।।४९।।
उपजाता है, गोत्रकर्म ऊँ च नीच गोत्रमें डाल देता है, और अन्तरायकर्म अनंत (बल) को
प्रगट नहीं होने देता । इस प्रकार ये कार्यको करते हैं, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर आत्माका
अनंतज्ञानादिस्वरूपका इन कर्मोंने न तो नाश किया, और न नया उत्पन्न किया,
आत्मा तो जैसा है वैसा ही है । ऐसे अखंड परमात्माको तू वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें
स्थिर होकर ध्यान कर । यहाँ पर यह तात्पर्य है, कि जो जीवपदार्थ कर्मोंसे न हरा
गया, न उपजा, किसी दूसरी तरह नहीं किया गया, वही चिदानन्दस्वरूप उपादेय
है ।।४८।।
इसके बाद जो आत्मा कर्मोंसे अनादिकालका बँधा हुआ है, तो भी कर्मरूप नहीं होता,
और कर्म भी आत्मस्वरूप नहीं होते आत्मा चैतन्य है, कर्म जड़ हैं, ऐसा जानकर उस
परमात्माका तू ध्यान कर, ऐसा कहते हैं —
ପୋତପୋତାନାଂ କାର୍ଯନେ ଉତ୍ପନ୍ନ କରେ ଛେ, ତୋପଣ ଶୁଦ୍ଧ ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ଜେ ଆତ୍ମାନୁଂ ଅନଂତଜ୍ଞାନାଦି ସ୍ଵରୂପ
ଜରା ପଣ ଵିନାଶ ପାମତୁଂ ନଥୀ କେ ନଵୁଂ ଉତ୍ପନ୍ନ ଥତୁଂ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମାନେ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ
ସମାଧିମାଂ ସ୍ଥିତ ଥଈନେ ଭାଵ ଏଵୋ ଅର୍ଥ ଛେ.
ଅହୀଂ ଜେ ଏକ (କେଵଳ) ଚିଦାନଂଦସ୍ଵରୂପ କର୍ମୋଥୀ ହଣାତୁଂ ନଥୀ, ତେମଜ ଉତ୍ପନ୍ନ କରାତୁଂ ନଥୀ,
ତେ ଜ ଉପାଦେଯ ଛେ, ଏଵୋ ତାତ୍ପର୍ଯାର୍ଥ ଛେ. ୪୮.
ହଵେ ଜେ କର୍ମଥୀ ବଂଧାଯୋ ହୋଵା ଛତାଂ ପଣ କର୍ମରୂପ ଥତୋ ନଥୀ ଅନେ କର୍ମ ପଣ ତେ ରୂପ
ଥତୁଂ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମାନେ ଭାଵ ଏମ କହେ ଛେ : —
୮୪ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୯