Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
कर्मनिबद्धोऽपि भवति नैव यः स्फु टं कर्म कदापि
कर्मापि यो न कदापि स्फु टं तं परमात्मानं भावय ।।४९।।
कम्मणिबद्धु वि होइ णवि जो फु डु कम्मु कया वि कर्मनिबद्धोऽपि भवति नैव यः
स्फु टं निश्चितम् किं न भवति कर्म कदाचिदपि तथाहियः कर्ता शुद्धात्मोप-
लम्भाभावेनोपार्जितेन ज्ञानावरणादिशुभाशुभकर्मणा व्यवहारेण बद्धोऽपि शुद्धनिश्चयेन कर्मरूपो न
भवति
केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्वरूपं त्यक्त्वा कर्मरूपेण न परिणमतीत्यर्थः पुनश्च किंविशिष्टः
कम्मु वि जो ण कया वि फु डु कर्मापि यो न कदापि स्फु टं निश्चितम् तद्यथा
ज्ञानावरणादिद्रव्यभावरूपं कर्मापि कर्तृभूतं यः परमात्मा न भवति स्वकीयकर्मपुद्गलस्वरूपं विहाय
गाथा४९
अन्वयार्थ :[यः ] जो चिदान्द आत्मा [कर्मनिबद्धोऽपि ] ज्ञानावरणादिकर्मोंसे बँधा
हुआ होनेपर भी [कदाचिदपि ] कभी भी [कर्म नैव स्फु टं ] कर्मरूप निश्चयसे नहीं [भवति ]
होता, [कर्म अपि ] और कर्म भी [यः ] जिस परमात्मरूप [कदाचिदपि स्फु टं ] कभी भी
निश्चयकर [न ] नहीं होते, [तं ] उस पूर्वोक्त लक्षणोंवाले [परमात्मानं ] परमात्माको तू
[भावय ] चिंतवन कर
भावार्थ :जो आत्मा अपने शुद्धात्मस्वरूपकी प्राप्तिके अभावसे उत्पन्न किये
ज्ञानावरणादि शुभ-अशुभ कर्मोंसे व्यवहारनयकर बँधा हुआ है, तो भी शुद्धनिश्चयनयसे कर्मरूप
नहीं है, अर्थात् केवलज्ञानादि अनंतगुणरूप अपने स्वरूपको छोड़कर कर्मरूप नहीं परिणमता,
और ये ज्ञानावरणादि द्रव्य
- भावरूप कर्म भी आत्मस्वरूप नहीं परिणमते, अर्थात् अपने जड़रूप
पुद्गलपनेको छोड़कर चैतन्यरूप नहीं होते, यह निश्चय है, कि जीव तो अजीव नहीं होता,
और अजीव है, वह जीव नहीं होता
ऐसी अनादिकालकी मर्यादा है इसलिये कर्मोंसे भिन्न
ଭାଵାର୍ଥ :ଜେ କର୍ମଥୀ ବଂଧାଯେଲ ହୋଵା ଛତାଂ ନିଶ୍ଚଯଥୀ କଦୀପଣ କର୍ମରୂପ ଥତୋ ନଥୀ, ଜେ
ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମାନୀ ପ୍ରାପ୍ତିନା ଅଭାଵଥୀ ଉପାର୍ଜିତ ଜ୍ଞାନାଵରଣାଦି ଶୁଭାଶୁଭ କର୍ମଥୀ ଵ୍ଯଵହାରେ ବଂଧାଯେଲୋ ହୋଵା
ଛତାଂ ପଣ ଶୁଦ୍ଧ ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ କର୍ମରୂପ ଥତୋ ନଥୀ, ଅର୍ଥାତ୍ କେଵଳଜ୍ଞାନାଦି ଅନଂତ ଗୁଣସ୍ଵରୂପ ଛୋଡୀନେ
କର୍ମରୂପ ପରିଣମତୋ ନଥୀ, ଅନେ କର୍ମ ପଣ ନିଶ୍ଚଯଥୀ କଦୀ ପଣ ଜେ-ରୂପ ଥତୁଂ ନଥୀ, ତେ ଆ ପ୍ରମାଣେ :
ଜ୍ଞାନାଵରଣାଦି ଦ୍ରଵ୍ଯ-ଭାଵରୂପ କର୍ମ ପଣ କର୍ତା ଥଈନେ ପରମାତ୍ମାରୂପ ଥତୁଂ ନଥୀ ଅର୍ଥାତ୍ ସ୍ଵକୀଯ
କର୍ମପୁଦ୍ଗଲସ୍ଵରୂପ ଛୋଡୀନେ ପରମାତ୍ମାରୂପେ ପରିଣମତୁଂ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମାନେ ତୁଂ ଭାଵ.
ଦେହ-ରାଗାଦି ପରିଣତିରୂପ ବହିରାତ୍ମାନେ ଛୋଡୀନେ, ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମ ପରିଣତିନୀ ଭାଵନାରୂପ
ଅନ୍ତରାତ୍ମାମାଂ ସ୍ଥିତ ଥଈନେ, ସର୍ଵପ୍ରକାରେ ଉପାଦେଯଭୂତ ଵିଶୁଦ୍ଧଜ୍ଞାନ ଅନେ ଵିଶୁଦ୍ଧଦର୍ଶନ ଜେନୋ ସ୍ଵଭାଵ
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୯ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୮୫