Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Punjabi transliteration). Gatha-19,20,21 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ਸ਼੍ਰੀ ਦਿਗਂਬਰ ਜੈਨ ਸ੍ਵਾਧ੍ਯਾਯਮਂਦਿਰ ਟ੍ਰਸ੍ਟ, ਸੋਨਗਢ - ੩੬੪੨੫੦
ਕੇ ‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु ’’ (ਅਰ੍ਥ:ਪਰਮਾਰ੍ਥਨਯਥੀ ਸਦਾ ਸ਼ਿਵਨੇ ਨਮਸ੍ਕਾਰ ਹੋ.)
ਵਲ਼ੀ ਕਹ੍ਯੁਂ ਪਣ ਛੇ ਕੇ‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ (ਅਰ੍ਥ:ਜੇ ਸ਼ਿਵਰੂਪ, ਪਰਮਕਲ੍ਯਾਣਰੂਪ, ਨਿਰ੍ਵਾਣਰੂਪ, ਸ਼ਾਂਤ, ਅਕ੍ਸ਼ਯ ਛੇ ਅਨੇ ਜੇਣੇ
ਮੁਕ੍ਤਿਪਦ ਪ੍ਰਾਪ੍ਤ ਕਰ੍ਯੁਂ ਛੇ ਤੇ ਸ਼ਿਵ ਛੇ.) ‘‘ਏਕ ਜਗਤ੍ਕਰ੍ਤਾ, ਸਰ੍ਵਵ੍ਯਾਪੀ, ਸਦਾ ਮੁਕ੍ਤ, ਸ਼ਾਂਤ, ਸ਼ਿਵ
ਛੇ’’ ਏਮ ਅਨ੍ਯ ਕੋਈਪਣ ਮਾਨੇ ਛੇ, ਪਣ ਏਮ ਨਥੀ.
ਅਹੀਂ ਆ ਜ ਸ਼ਾਂਤ ਸ਼ਿਵਸਂਜ੍ਞਾਵਾਲ਼ੋ ਸ਼ੁਦ੍ਧ ਆਤ੍ਮਾ ਜ ਉਪਾਦੇਯ ਛੇ ਏਵੋ ਭਾਵਾਰ੍ਥ
ਛੇ. ੧੮.
ਹਵੇ ਪੂਰ੍ਵੋਕ੍ਤ ਨਿਰਂਜਨਸ੍ਵਰੂਪਨੇ ਤ੍ਰਣ ਸੂਤ੍ਰੋਥੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰੇ ਛੇ :
शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन शक्ति रूपेणेति तथा चोक्त म्‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु’’
पुनश्चोक्त म्‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् प्राप्तं मुक्ति पदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ अन्यः कोऽप्येको जगत्कर्ता व्यापी सदा मुक्त : शान्तः शिवोऽस्तीत्येवं न
अत्रायमेव शान्तशिवसंज्ञः शुद्धात्मोपादेय इति भावार्थः ।।१८।।
अथ पूर्वोक्तं निरञ्जनस्वरूपं सूत्रत्रयेण व्यक्त ीकरोति
१९) जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सद्दु ण फ ासु
जासु ण जम्मणु मरणु णवि णाउ णिरंजणु तासु ।।१९।।
२०) जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु
जासु ण ठाणु ण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ।।२०।।
२१) अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ
अत्थि ण एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ।।२१।। तियलं
੪੪ ]ਯੋਗੀਨ੍ਦੁਦੇਵਵਿਰਚਿਤ: [ ਅਧਿਕਾਰ-੧ : ਦੋਹਾ-੧੯-੨੧
हैं, व्यक्तिरूपसे नहीं है ऐसा कथन अन्य ग्रंथोंमें भी कहा है‘शिवमित्यादि’ अर्थात्
परमकल्याणरूप, निर्वाणरूप, महाशांत अविनश्वर ऐसे मुक्ति-पदको जिसने पा लिया है, वही
शिव है, अन्य कोई, एक जगत्कर्ता सर्वव्यापी सदा मुक्त शांत नैयायिकोंका तथा वैशेषिक
आदिका माना हुआ नहीं है
यह शुद्धात्मा ही शांत है, शिव है, उपादेय है ।।१८।।
आगे पहले कहे हुए निरंजनस्वरूपको तीन दोहा-सूत्रोंसे प्रगट करते हैं