Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-70 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
௧௨௪ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௭௦
शिष्यके प्रश्न करने पर समाधान यह है, कि ये सब देहके हैं ऐसा कथन करते हैंश्रीगुरु
कहते हैं,
गाथा७०
अन्वयार्थ : हे शिष्य, [त्वं ] तू [देहस्य ] देहके [उद्भवः ] जन्म [जरामरणं ]
जरा मरण होते हैं, अर्थात् नया शरीर (धरना), विद्यमान शरीर छोड़ना, वृद्ध अवस्था होना,
ये सब देहके जानो, [देहस्य ] देहके [विचित्रः वर्णः ] अनेक तरहके सफे द, श्याम, हरे,पीले,
लालरूप पाँच वर्ण, अथवा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, ये चार वर्ण, [देहस्य ] देहके
[रोगान् ] वात, पित्त, कफ , आदि अनेक रोग [देहस्य ] देहके [विचित्रम् लिंङ्गं ] अनेक
प्रकारके स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुसकलिंगरूप चिन्हको अथवा यतिके लिंगको और द्रव्यमनको
[विजानीहि ] जान
भावार्थ :शुद्धात्माका सच्चा श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप अभेदरत्नत्रयकी भावनासे
विमुख जो राग, द्वेष, मोह उनकर उपार्जे जो कर्म उनसे उपजे जन्म-मरणादि विकार है, वे
सब यद्यपि व्यवहारनयसे जीवके हैं, तो भी निश्चयनयकर जीवके नहीं हैं, देहसम्बन्धी है ऐसा
जानना चाहिये
यहाँ पर देहादिकमें ममतारूप विकल्पजालको छोड़कर जिस समय यह जीव
ப்ரஶ்நநா உத்தரமாஂ ‘தே ஸர்வ தேஹநாஂ சே’ ஏம கஹே சே :
பாவார்த :ஶுத்த ஆத்மாநாஂ ஸம்யக்ஶ்ரத்தா, ஸம்யக்ஜ்ஞாந, ஸம்யக் ஆசரணரூப அபேத
ரத்நத்ரயநீ பாவநாதீ ப்ரதிகூள ராக, த்வேஷ, மோஹதீ உபார்ஜித ஜே கர்மோ தேநா உதயதீ ப்ராப்த ததா
भवन्तीति प्रतिपादयति
७०) देहहँ उब्भउ जर-मरणु देहहँ वण्णु विचित्तु
देहहँ रोय वियाणि तुहुँ देहहँ लिंगु विचित्तु ।।७०।।
देहस्य उद्भवः जरामरणं देहस्य वर्णः विचित्रः
देहस्य रोगान् विजानीहि त्वं देहस्य लिङ्गं विचित्रम् ।।७०।।
देहस्य भवति किं किम् उब्भउ उत्पत्तिः जरामरणं च वर्णो विचित्रः वर्णशब्देनात्र
पूर्वसूत्रे च श्वेतादि ब्राह्मणादि वा गृह्यते तस्यैव देहस्य रोगान् विजानीहीति, लिङ्गमपि
लिङ्गशब्देनात्र पूर्वसूत्रे च स्त्रीपुंनपुंसकलिङ्गं यतिलिङ्ंग वा ग्राह्यं चित्तं मनश्चेति तद्यथा
शुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपाभेदरत्नत्रयभावनाप्रतिकूलै रागद्वेषमोहैर्यान्युपार्जितानि कर्माणि